भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जीवन परिचय | महात्मा गांधी की जीवनी

Mahatma Gandhi Short Biography & Essay In Hindi | महात्मा गांधी की पूरी जीवनी

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Mahatma Gandhi Biography


महात्मा गांधी का भारतीय राजनीति में बहुत ही सम्मानित स्थान है। साथियों महात्मा गांधी को पूरा देश जिस दृष्टि से देखता है वैसा सम्मान आजतक ना तो किसी और व्यक्ति को मिला है और ना ही आने वाली कई शताब्दियों तक मिलने की संभावना भी है तो आज महात्मा गांधी के जीवनी के बारे में जानते हैं।


पूरे देश में राष्ट्रपिता के नाम से सम्मानित  महात्मा गांधी देश के अमूल्य धरोहर में से एक है, क्योंकि उनका सम्मान और उनके विचारों का सम्मान ना केवल भारत में होता है बल्कि कई देशों में भी लोग गाँधीजी के विचारों और कार्यों को बहुत सम्मान करते हैं।


क्या आप जानते हैं कि महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता किसने नाम दिया था। आपको बता दें कि सुभाष चंद्र बोस से सबसे पहली बार महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कह कर सम्बोधित किया था।


तो चलिए आज आपको महात्मा गांधी का जीवन परिचय के बारे में पूरी विस्तार से बताते हैं।


महात्मा गांधी का इतिहास और उन पर निबंध

महात्मा गांधी का परिवार

महात्मा गांधी का बचपन और शिक्षा

महात्मा गांधी का विदेश यात्रा और राजनीति में प्रवेश

महात्मा गांधी का राजनीतिक जीवन और दर्शन

महात्मा गांधी का राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान

महात्मा गांधी की दांडी यात्रा

महात्मा गांधी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

महात्मा गांधी के गलत निर्णय और विचार

महात्मा गांधी की मौत कब और कैसे हुआ?


Mahatma Gandhi History & Essay in Hindi | महात्मा गांधी पर निबंध

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महात्मा गांधी की जीवनी


महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर जिले में हुआ था। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी थामहात्मा गांधी के पिता का नाम करमचंद गांधी था। उस समय के चलन के अनुसार गाँधी जी के पिताजी ने भी चार विवाह किए थे।


गांधीजी के पिता करमचंद गांधी पेशे से एक दीवान थे। वे स्वयं ये नहीं जानते थे कि उनका यह पुत्र एक दिन भारत के स्वतंत्रता का सबसे बड़ा महानायक बनेगा और इतिहास के पन्नों में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज करवाएगा।


गांधीजी एक सक्षम प्रशासक थे,जो ये बात बहुत अच्छी तरह से जानते थे कि कैसे तत्कालीन सशक्त राजकुमारों के बीच में अपनी जगह बनानी है या अपने उद्देश्यों के साथ सत्ताधारी ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों के बीच कैसे अपनी पहचान बनानी है।


साथियों महात्मा गांधी के माता का नाम पुतलीबाई था। गांधीजी के माताजी ने अपना पूरा जीवन धार्मिक कार्यों को करने में ही व्यतीत किया। उन्होंने अपने जीवन में सांसारिक वस्तुओं का महत्व कभी नहीं दिया। उन्होंने अपना ज्यादातर समय या तो मंदिर में या फिर घरेलू कार्यों में ही बिताती थी।


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वास्तव में उनकी माँ एक आध्यात्मिक महिला थी। बीमार आदमी की सेवा करना, व्रत रखना,गरीबों की मदद करना उनका यहीं दैनिक जीवन था।


गाँधीजी की परवरिश एक ऐसे माहौल में हुई जहाँ पर पहले से ही आध्यात्मिक माहौल था और जैन धर्म के अनुयायी रहा करते थे। इसलिए महात्मा गांधी शाकाहारी भोजन,अहिंसा जैसे जीवन शैली में विश्वास रखते थे जिससे मन को शुद्ध किया जा सकें।


महात्मा गांधी का परिवार  | Mahatma Gandhi Family


पिता: करमचंद गांधी
माता: पुतलीबाई
पत्नी: कस्तूरबा गांधी
महात्मा गांधी के बच्चे: हरिलाल गांधी, मणिलाल गांधी, देवदास गांधी, रामदास 
गांधी


महात्मा गाँधी का बचपन और शिक्षा | Mahatma Gandhi Early Life Story & Education in hindi


महात्मा गांधी का बचपन भी मुश्किलों से भरा रहा। पोरबंदर में शिक्षा की प्राप्त करने की मूलभूत सुविधा नहीं होने के कारण महात्मा गांधी की प्राथमिक शिक्षा मुश्किल परिस्थितियों में पूरी हुई। उन्होंने अपनी उंगलियों से मिट्टी को उकेरकर वर्णमाला सीखी थी। बाद में किस्मत से उनके पिता को राजकोट में दीवान का पद मिल गया।


1887 में महात्मा गांधी ने यूनिवर्सिटी ऑफ बॉम्बे से मैट्रिक की परीक्षा पास किया और भावनगर के रामलालदास कॉलेज में अपना एडमिशन कराया। जहाँ पर उन्होंने अपनी मातृभाषा गुजराती को छोड़कर इंग्लिश में पढ़ना शुरू किया।


जिसके कारण उनको शिक्षकों की पढ़ाई गयी बातों को समझने में काफी परेशानी हो रही थी। इसी दौरान उनका परिवार उनके भविष्य को लेकर काफी चिंतित था,क्योंकि वो डॉक्टर बनना चाहते थे। लेकिन वो वैष्णव परिवार के होने के कारण वे डॉक्टर का काम नहीं कर सकते थे। 


इसलिए उनके परिवार वालों को लगा कि उन्हें अपने परिवार के परम्परा को निभाते हुए गुजरात के किसी उच्च अधिकारी के पद पर लगना होगा। इसलिए उन्हें बैरिस्टर बनना होगा।


उस समय महात्मा गांधी भी श्यामलदास कॉलेज के पढ़ाई से खुश नहीं थे और वो इस बात को सुनकर खुश हुए। उन्होंने युवावस्था में अनेकों सपने देखे था। पर उनके पिता के पास बहुत कम सम्पति होने के कारण गांधीजी के पास थोड़ा बहुत ही सम्पत्ति था और उनकी माँ भी उनको विदेश भेजने से डर रही थी। लेकिन गाँधीजी अपने निर्णय पर अडिग थे। उनके भाइयों ने आवश्यक पैसों का जुगाड़ किया।


महात्मा गांधी का विदेश यात्रा और राजनीति में प्रवेश


इस तरह सिंतबर 1888 को गाँधीजी विदेश के लिए रवाना हो गए। वहाँ पहुँचने के दस दिनों के बाद लन्दन लॉ कॉलेज में अपना एडमिशन करवा लिया। 1891 में इंग्लैंड से भारत लौटने पर उन्होंने वकालत में करना शुरू किया। अपने कोर्ट केस में गाँधीजी बहुत नर्वस थे और जब केस की सुनवाई शुरू हुई तो वो कुछ नहीं बोल पाये और कोर्ट से बाहर आ गए। इस कारण उन्हें अपने क्लाइंट को पूरे पैसे लौटाने पड़े।


कुछ समय तक गांधीजी भारत में एक लॉयर के रूप में काफी संघर्ष किये और उसके बाद साउथ अफ्रीका में एक साल के लिए एक सर्विस का कॉन्ट्रैक्ट मिला। जिसके कारण गांधीजी अप्रैल 1893 को साउथ अफ्रीका के लिए रवाना हो गए।


वहाँ उन्हें रंगभेद का सामना करना पड़ा। एक बार डरबन के कोर्ट में उन्हें अपनी पगड़ी हटाने को कहा गया, जिसको उन्होंने साफ मना कर दिया और कोर्ट छोड़कर बाहर चले गए।


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7 जून 1893 को महात्मा गांधी को ट्रेन से यात्रा करने के दौरान एक बहुत ही अजीब घटना घटी,जिसने उनके जीवन को बदल कर रख दिया। जब वो प्रिटोरिया जा रहे थे तभी एक अंग्रेज ने उनके फर्स्ट क्लास में यात्रा करने पर आपत्ति जताई जबकि उनके पास उसका टिकट भी था। उनको ट्रेन से उतरने के लिए कहा गया जिसको उन्होंने मना कर दिया। इसलिए उनको अगले स्टेशन पर जबर्दस्ती धक्का देकर ट्रेन से नीचे फेंक दिया गया।


उनको ये अपमान सहा नहीं गया और उनको अंदर तक झकझोर कर रख दिया और उन्होंने खुद को इस रंगभेद से लड़ने के लिए तैयार कर लिया। उन्होंने प्रतिज्ञा कर लिया कि इस समस्या को वो जड़ से मिटा कर रहेंगे और उन्होंने ये तय कर लिया कि “अंग्रेजों आज तुमने मुझे ट्रेन से धक्का देकर बाहर फेका है, एक दिन ऐसा आयेगा मैं तुम सबको अपने पूरे देश से बाहर फेंक दूंगा।”


इस घटना के बाद एक सामान्य गाँधी से एक महान गाँधी का जन्म हुआ। महात्मा गांधी ने रंगभेद से लड़ने के लिए 1894 में नेटल इंडियन कांग्रेस (एनआईसी) की स्थापना की।


एक साल के बाद जब उन्होंने भारत लौटने की तैयारी शुरू की उससे पहले ही नेटल असेम्बली ने भारतीयों को वोट देने से वंचित कर दिया। उनके साथियों ने भी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई जारी रखने को लेकर आश्वस्त किया। इस तरह गांधीजी ने इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक उठाया।


कुछ समय तक भारत में रहने के बाद गाँधीजी अपने पत्नी और बच्चों के साथ साउथ अफ्रीका लौट गए। वहां उन्होंने लीगल प्रैक्टिस की। युद्ध के दौरान उन्होंने ब्रिटिश सरकार की मदद की। उनका मानना था कि यदि भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य में अपने मूलभूत नागरिक अधिकार चाहते हैं तो उन्हें भी अपने कर्तव्यों को पूरा करना होगा।


वास्तव में गाँधीजी ने अपने जीवन में पहली बार साउथ अफ्रीका में ही नागरिक समानता के लिए रैली निकाली और अपने इस विरोध प्रदर्शन का नाम सत्याग्रह का नाम दिया। इस कारण वहां उन्हें कुछ समय के लिए जेल भी हुई। कुछ परिस्थितियों में गाँधीजी ब्रिटिश सरकार का साथ भी दिया जिसके लिए उनकी बहुत आलोचना भी हुई।


बोअर वॉर और जुलु विद्रोह के लिए किए गए उनके प्रयासों के लिए ब्रिटिश सरकार ने उनकी अनुशंसा भी की।

1906 में महात्मा गांधी ने पहला आंदोलन शुरू किया जिसका नाम सत्याग्रह आंदोलन दिया। इस आंदोलन का खास मकसद साउथ अफ्रीका में ट्रांसवाल सरकार के द्वारा लगाई गयी अवैध पाबंदियों पर था। जिसमें हिन्दू विवाह को नहीं मानना भी शामिल था। 7 वर्षों तक चले इस संघर्ष के बाद सरकार ने गाँधीजी के साथ कई भारतीयों को जेल में डाल दिया था।


आखिरकार बढ़ते दबाव के कारण साउथ अफ्रीका की सरकार ने गांधीजी के साथ समझौते के लिए तैयार हो गई। जिसके चलते वहाँ पर हिन्दू विवाह को भी मान्यता मिली और भारतीयों पर लगाये गए पोल टैक्स को खत्म किया।


दक्षिण अफ्रीका में रहने के दौरान महात्मा गांधी को कई बार गिरफ्तार किया गया। लेकिन फिर भी उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ़ लड़ाई बंद नहीं कि । सन 1913 में फिर से उन्होंने अफ्रीकी सरकार के द्वारा भारत के बंधुआ मजदूरों पर लगाए गए टैक्स का पूरा विरोध किया। अफ्रीकी सरकार के खिलाफ इस लड़ाई में भी गांधीजी की जीत हुई थी।


महात्मा गांधी का राजनीतिक दर्शन और जीवन


महात्मा गांधी के प्रति लोगों का इतना प्यार था कि 1914 में जब उन्होंने साउथ अफ्रीका छोड़कर भारत लौटने लगे तो वहाँ के लोगों ने बड़े ही सम्मान से कहा एक सन्त ने हमारा साथ छोड़ दिया। हमलोग हमेशा उनके लिए प्रार्थना करेंगे। इसके बाद महात्मा गांधी ने प्रथम विश्वयुद्ध के समय लन्दन में बिताए।


महात्मा गांधी का राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान

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1918 में गांधीजी ने ब्रिटिश लैंडलोर्डस के खिलाफ चंपारण आंदोलन का नेतृत्व किया था। उस समय अंग्रेजों द्वारा निल की खेती करने को मजबूर किया जा रहा था और उनके गलत कानून से तंग आकर आखिर में इन किसानों ने गाँधीजी से सहायता माँगी थी। 


जिसका परिणाम अहिंसक आंदोलन के रूप में हुआ। और इस आंदोलन में गांधीजी के विचारों के आगे अंग्रेजों को झुकना पड़ा और अपने कानून को वापस लेना पड़ा।


1918 में खेड़ा में जब बाढ़ आई तब वहां किसानों को भारी क्षति हुई जिससे वहां के किसानों को अंग्रेजों द्वारा लगाए गए टैक्स में छूट की सख्त आवश्यकता थी। गांधीजी ने उस समय फिर से अहिंसक आंदोलन के द्वारा अंग्रेजों तक अपनी बात पहुंचाई। 


इस आंदोलन में भी गांधीजी को बहुत बड़ा जनसमर्थन मिला और अन्ततः मई 1918 में सरकार ने टैक्स भरने की राशि मे छूट दे दी। इस तरह गांधीजी में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ धीरे-धीरे आंदोलन जारी किया।


भारत में महात्मा गांधी का पहला असहयोग आंदोलन 1919 मे भारत मे जब ब्रिटिश सरकार का शासन था तब गांधीजी राजनैतिक आंदोलन कर रहे थे। उस समय रॉलेट एक्ट आया था जिसके तहत बिना किसी सुनवाई के क्रांतिकारियों को सजा दी जा सकेगी।


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गांधीजी ने इस कानून का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने इसके खिलाफ सत्याग्रह और शांतिपूर्ण आंदोलन किये। इसी दौरान अमृतसर में जलियावाला बाग हत्याकांड हुआ। जिसमें ब्रिटिश सरकार के जनरल डायर ने सैकड़ों निहत्थे लोगों को सैनिकों को गोलियों से भून दिया था।


गांधीजी इस घटना से बहुत नाराज हुए। उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों का प्रथम विश्वयुद्ध में भाग लेने का अनिवार्यता का भी विरोध किया। इस तरह महात्मा गांधी भारतीय होमरूल का प्रमुख चेहरा बन गए। तथा अंग्रेजों के सम्पूर्ण बहिष्कार का आह्वान किया।


छात्रों को सरकारी स्कूलों में नहीं जाने के लिए, सैनिकों को अपना पद छोड़ने के लिए, नागरिकों को किसी भी समान का टैक्स नहीं भरने के लिए और किसी भी ब्रिटिश समान को नहीं खरीदने के लिए प्रेरित किया।


उन्होंने खुद भी अंग्रेजों के द्वारा बनाये गए कपड़ों के जगह पर चरखे लगाकर खादी का निर्माण करने पर ध्यान केंद्रित किया। और यहीं चरखा जल्द ही भारतीय स्वतंत्रता का प्रतीक भी बन गया।


महात्मा गांधी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व भी किया और होमरूल के लिए अहिंसा तथा असहयोग आंदोलन की नींव रखी। ब्रिटिश सरकार ने 1922 में गाँधीजी पर राजद्रोह के तीन मुकदमे लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया और छः साल के लिए कारावास में डाल दिया गया।


गांधीजी को उनके अपेंडिक्स के सर्जरी के बाद फरवरी 1924 में छोड़ा गया। जब वे जेल से बाहर निकले तो उन्होंने देखा कि भारत मे मुस्लिम और हिन्दू आपस में एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं। इसलिए उन्होंने इसके लिए तीन महीने का उपवास रखा। उसके बाद महात्मा गांधी आगामी कुछ सालों तक राजनीति से दूर ही रहे।


महात्मा गांधी की दांडी यात्रा | दांडी यात्रा पर निबंध


1930 में गाँधीजी ने वापस सक्रिय राजनीति में प्रदार्पण किया और उन्होंने ब्रिटिश सरकार का नमक के खिलाफ चलाये गए कानून का पुरजोर विरोध किया। 


इस कानून के अनुसार भारतीय न तो नमक का उत्पादन कर सकते थे और न ही उसको बेच सकते थे। साथ ही साथ नमक पर भी कर लगा दिया गया। जिसके कारण बहुत से गरीब भारतीयों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था।


गांधीजी ने इसका विरोध करने के लिए 390 किलोमीटर पैदल चलकर अरेबियन सागर तक गए। वहाँ पर वे प्रतीकात्मक रूप से नमक इकट्ठा किया। 

इस आंदोलन को शुरू करने से एक दिन पहले ही उन्होंने लॉर्ड इरविन को उन्होंने एक पत्र लिखकर कहा था कि मेरे उद्देश्य सिर्फ ये है कि मैं अहिंसात्मक तरीके से ब्रिटिश सरकार को यह महसूस करवाऊंगा की वो भारतीयों के साथ कितना गलत कर रहे हैं।


12 मार्च के दिन एक धोती और सौल पहनकर एक डंडे के सहारे साबरमती आश्रम से महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा शुरू किया था। जिसके 24 दिन बाद वो कोस्टल टाउन दांडी पहुंचे। वहाँ उन्होंने वाष्पीकृत होने वाले समुन्द्र जल से नमक बना कर अंग्रेजों के बनाये हुए नियम को तोड़ा। इस तरह इस नमक यात्रा से पूरे देश में क्रांत्ति की लहर दौड़ गई।


लगभग 60 हजार भारतीयों को नमक कानून तोड़ने के जुर्म में जेल में डाल दिया गया। जिसमें गांधीजी भी शामिल थे। जिसके कारण वो भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गए।


इस आंदोलन से प्रभावित होकर टाइम मैगजीन ने उन्हें ‘मैन ऑफ द ईयर‘ का खिताब दिया। फरवरी 1931 में उन्हें जेल से छोड़ा गया और इसके ठीक दो महीने बाद लार्ड इरविन से समझौता कर इस नमक कानून को समाप्त किया।


इस समझौते के बाद जेल में बंद हजारों राजनैतिक बंदियों को रिहा किया गया। इस आंदोलन के साथ गांधीजी को इतना जनसमर्थन मिला जिससे यह उम्मीद जगी की स्वराज्य के लिए यह सत्याग्रह मिल का पत्थर साबित होगा।


महात्मा गांधी ने 1931 में लन्दन में आयोजित इंडियन नेशनल कांग्रेस के मुख्य प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। हालांकि यह कॉन्फ्रेंस निरर्थक साबित हुई। 1932 में गांधीजी लन्दन से वापस लौटे। उन्हें वापस जेल में डाल दिया गया। उस समय भारत का एक नया वायसराय लार्ड विलिंगटन आया था।


इसके बाद जब गांधीजी जेल से बाहर आये तो 1934 में उन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस की लीडरशिप छोड़ दिया और उसकी जगह जवाहरलाल नेहरू ने संभाली। इस तरह गांधीजी फिर राजनीति से दूर हो गए। उन्होंने अपना पूरा ध्यान शिक्षा, गरीबी और अन्य सभी समस्यायें जो भारत के ग्रामीण क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा था उस पर लगाया।


1942 में इसी बीच द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ गया। ग्रेट ब्रिटेन जब इस युद्ध में उलझा हुआ था तब गांधीजी से भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की। अगस्त 1942 में अंग्रेजों ने गांधीजी, उनकी पत्नी और इंडियन नेशनल कांग्रेस के अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। इन सभी को पुणे के एक जेल में रखा गया।


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उन्नीस महीने के बाद गाँधीजी को जेल से रिहा कर दिया गया। लेकिन उनकी पत्नी की मृत्यु जेल में ही हो गयी। 1945 में जब ब्रिटिश सरकार के आम चुनाव में लेबर पार्टी ने विस्टन चर्चिल के परम्परावादी पार्टी को हटा दिया।


तब इंडियन नेशनल कांग्रेस और मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना ने देश की स्वतंत्रता की मुहिम को और तेज कर दिया था। जिसमें गांधीजी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन वो देश के विभाजन को नहीं रोक सके और धर्म के आधार पर भारत दो टुकड़ों में बंट गया। एक टुकड़ा पाकिस्तान को दिया गया और एक भारत को।


गांधीजी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य इस प्रकार है | Top 5 Interesting Facts About Mahatma Gandhi in Hindi


● गाँधीजी को अबतक 5 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकन किया जा चुका है और नोबेल पुरस्कार की कमिटी इस बात के लिए अफसोस जता चुकी है कि इन्हें कभी भी इस पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया जा सका।

● गांधीजी चार महादेश और 12 देशों में नागरिक अधिकार आंदोलन के लिए जिम्मेदार थे।

● उनके लिए विश्व्यापी सम्मान और उनके अनुयायियों की संख्या का अंदाजा इस प्रकार से लगाया जा सकता है कि महात्मा गांधी के शव यात्रा 8 किलोमीटर से भी ज्यादा लम्बी थी।

● गांधीजी ने अपने जीवन में पाँच वर्ष फल, बादाम आदि खाकर बिताए हैं। फिर गिरते स्वास्थ्य के कारण उन्होंने ये छोड़ दिया था। उन्होंने दूध से बनी खाद्य सामग्री को भी स्वीकार नहीं किया था लेकिन बाद में खराब स्वास्थ्य के कारण बकरी का दूध पीना शुरू कर दिया था।

● उनके बहुत सारे उपवासों को देखकर सरकार ने पोषण विशेषज्ञ को यह बताने के लिए बुलाया था कि गांधीजी बिना भोजन के 21 दिन तक कैसे रह सकते हैं।


महात्मा गांधी के गलत निर्णय और विचार | Top 10 thoghuts & Points On Mahatma Gandhi in hindi


महात्मा गांधी के 10 गलत काम जिसको लेकर प्रायः उनकी आलोचना भी की जाती है। उनकी आलोचना के मुख्य बिन्दु हैं-
1. बोअर युद्ध और जुलु विद्रोह में अंग्रेजों का साथ देना 

2. विश्वयुद्धों में अंग्रेजों का साथ देना

3. खिलाफत आन्दोलन को राष्ट्रीय आन्दोलन बनाना

4. अंग्रेजों के विरुद्ध सख्ती से पेश आने वाले क्रांतिकारियों की निन्दा करना

5. लार्ड इरविन के साथ समझौता – जिससे भारतीय क्रन्तिकारी आन्दोलन को बहुत धक्का लगा

6. सुभाष चन्द्र बोस के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर चुनाव पर नाखुश होना

7. चौरीचौरा काण्ड के बाद असहयोग आन्दोलन को वापस लेना

8. भारत की स्वतंत्रता के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल की जगह नेहरू को प्रधानमंत्री का दावेदार बनाना

9. स्वतंत्रता के बाद भारत का विभाजन पाकिस्तान को 55 करोड़ रूपये देने की जिद पर अनशन करना

10. भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारी को फांसी से नहीं बचाना


महात्मा गांधी की मृत्यु कब और कैसे हुई थी? Mahatma Gandhi को किसने मारा था?


30 जनवरी 1948 के दिन 78 वर्षीय गांधीजी जो कि भूख हड़ताल से पूरी तरह टूट चुके थे। उन्होंने नई दिल्ली के बिड़ला भवन में गृह मीटिंग के लिए प्रस्थान किया। उस समय नाथूराम गोडसे पहले महात्मा गांधी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया फिर उनके सीने में लगातार तीन गोली मारकर हत्या कर दी।


दो गोली तो शरीर को पार कर गयी और एक गोली अंदर ही रह गयी। अहिंसा के इस पुजारी का हिंसा के साथ अंत होना पूरे देश के लिए एक बेहद दुखद समाचार लेकर के आया। 


महात्मा गांधी की मृत्यु का कारण ये था कि उस समय उन्होंने भारत का विभाजन होने दिया और साथ ही उसके बदले पाकिस्तान को सहायता राशि के रूप में 50 करोड़ रुपये देने के लिए विवश कर दिया था। पैसे नहीं देने पर भी अनशन पर बैठने की धमकी उन्होंने दे डाली थी। जिसके कारण गाँधीजी के कारण पाकिस्तान को इतने रुपये देने पड़े।


महात्मा गांधी के इस फैसले से पूरे देश में रोष की ज्वाला फैल गयी थी। इस बात से गुस्सा होकर नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी।


पर कुछ लोगों के अनुसार गांधीजी दरअसल में ये चाहते थे कि अगर पाकिस्तान को रुपये नहीं दिए गए तो इससे दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति पैदा होगी और सिमा पर विवाद भी फैलेगी।


नाथूराम गोडसे और उनके साथियों को महात्मा गांधी की हत्या के जुर्म में नवंबर 1949 को फांसी पर चढ़ाया गया और उनके साथ मिले अन्य साथियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। पूरे भारत में हम कई सालों से महात्मा गांधी का जन्मदिन पूरे सम्मान के साथ 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के रूप में मनाते हैं।


आप सभी को महात्मा गांधी की जीवनी कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताइयेगा। साथ ही अगर आपको महात्मा गांधी का निबंध पसन्द आया हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर कीजियेगा।


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