स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय और उनके सुविचार

Swami Vivekananda Wikipedia Biography in Hindi | स्वामी विवेकानंद की जीवनी

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स्वामी विवेकानंद की जीवनी


आज उस महान इंसान के बारे में बात करने जा रहे हैं जिनके सिद्धान्तों ने पूरे भारत सहित कई देशों के सोच को बदल दिया और इसे पढ़ने के बाद शायद आपका सोच भी बदल देगा। जी हाँ दोस्तों ऐसे महान संत का नाम स्वामी विवेकानंद है।


आज हम बात करेंगे स्वामी विवेकानंद की जीवनी के बारे में। वे हमेशा सन्यासी जीवन जीते थे। इसके बावजूद वो हमेशा देश के विकास के बारे में ही सोचते रहते थे।


उनका जीवन देश के कई नौजवानों को कई सिख दिया, उनको सोचने पर मजबूर कर दिया। कैसे वो अपने अंदर छुपे हुए टैलेंट को बाहर निकाल सकते हैं और कैसे वो अपने इस टैलेंट को अपने परिवार तथा अपने देश के विकास के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।

तो चलिए स्वामी विवेकानंद की स्टोरी के बारे में पूरी विस्तार से जानते हैं।


स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | Swami Vivekananda history in hindi

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स्वामी विवेकानंद


12 जनवरी 1863 को स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकता में हावड़ा शहर के बेलूर मठ में एक कुलीन उदार परिवार में हुआ था। स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। इनके नौ भाई बहन थे।


विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जो कोलकता हाइकोर्ट में ऑफ अटॉर्नी जनरल थे जो वकालत करते थे। स्वामी विवेकानंद के माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था जो सरल एवं धार्मिक विचारों वाली महिला थी।


स्वामी विवेकानंद का बचपन | Swami Vivekananda Early Life Story In Hindi


स्वामी विवेकानंद बचपन से शरारती और कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। उनके माता पिता को कई बार सम्भालने और समझाने में काफी परेशानी होती थी। बचपन में उन्हें वेद,उपनिषद, भगवत गीता, रामायण, महाभारत आदि के बारे में अपने माता से सुनने में काफी मन लगता था। उनको योग और कुश्ती में भी काफी रुचि रहती थी।


स्वामी विवेकानंद की शिक्षा | Swami Vivekananda Education


सन 1881 की बात है। जब एक शिक्षक ने अपने विद्यार्थियों से पूछा कि ये धरती, आकाश, आदमी, पेड़-पौधे क्या ये सब भगवान ने बनाये हैं। इस सवाल को सुनकर एक विद्यार्थी ने बोला हाँ ये सब भगवान का ही बनाया हुआ है।


प्रोफेसर ने दुबारा एक सवाल पूछा तो फिर शैतान को किसने बनाया है? क्या शैतान को भी भगवान ने ही बनाया है ? तब उस विद्यार्थी ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। लेकिन उस विद्यार्थी ने अपने प्रोफेसर से एक प्रश्न पूछने की अनुमति मांगी। प्रोफेसर ने उस छात्र को सवाल पूछने की अनुमति दे दी।


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उस लड़के ने पूछा- क्या ठंड का कोई वजूद है ? 

प्रोफेसर ने जवाब दिया- हाँ है, क्यों तुम्हे ठंड का एहसास नहीं हो रहा है ?

लड़के ने जवाब दिया- क्षमा कीजिये सर आपका उतर गलत है, क्योंकि ठंड का कोई अस्तित्व ही नहीं है। ठंड केवल ऊष्मा और गर्मी के अनुपस्थिति का एहसास है। इसलिए ठंड का कोई अस्तित्व नहीं है।


उस छात्र ने दुबारा एक प्रश्न किया- सर क्या अंधकार और अंधेरे का कोई अस्तित्व है ?
प्रोफेसर ने फिर उतर दिया – हाँ है। रात होने पर अंधकार हीं तो होता है।
छात्र ने जवाब दिया- सर आप दुबारा गलत जवाब दे रहे हैं, क्योंकि अंधकार का कोई अस्तित्व ही नहीं है। अंधकार दरअसल प्रकाश की अनुपस्थिति है।


जिस प्रकार ठंड और अंधकार का अस्तित्व नहीं होता है ठीक उसी प्रकार शैतान का कोई अस्तित्व नहीं होता है। असलियत में शैतान तो प्यार, आस्था और ईश्वर की अनुपस्थिति का एहसास है। शैतान का अपना कोई अस्तित्व नहीं है।


वो छात्र कोई और नहीं बल्कि स्वामी विवेकानंद जी थे। तो आइये दोस्तों भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने वाले स्वामी विवेकानंद की शिक्षा के बारे में विस्तार से जानते हैं।


स्वामी विवेकानंद 1879 में प्रेसिडेंसी कॉलेज के एंट्रेंस एग्जाम में फर्स्ट डिवीजन लाने वाले पहले छात्र बनें। उन्होंने पश्चिमी सभ्यता और यूरोपीय इतिहास की पढ़ाई जनरल असेम्बली इंस्टिट्यूट से किया।


सन 1881 में उन्होंने ललित कला की परीक्षा पास की और 1884 में स्नातक की डिग्री हासिल की। जनरल असेम्बली संस्था के अध्यक्ष विलियम हेस्टी ने ये लिखा है कि नरेन्द्र सच में बहुत होशियार है। मैं उसके साथ बहुत दूर तक गया लेकिन मैं और जर्मन विश्वविद्यालय के छात्र कभी भी उनके आगे न जा सके।


स्वामी विवेकानंद के पिता विश्वनाथ दत अपने पुत्र को अंग्रेजी शिक्षा देकर पश्चिमी सभ्यता में रखना चाहते थे। लेकिन दोस्तों नियति को तो कुछ और ही मंजूर था।


नरेंद्र के पिता की 1884 में अचानक मृत्यु हो गयी। जिससे नरेंद्र के परिवार पर दुःखों का पहाड़ टूट गया। साहूकार दिए हुये कर्जे की मांग करने लगे और रिश्तेदारों ने भी उनके पूर्वजों के घर से निकाल दिया। मुसीबत के इस दौर में नरेन्द्र काम की तलाश करने लगे। परन्तु भगवान के अस्तित्व का प्रश्न उनके सामने खड़ा हुआ।


स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था। जिन्होंने भगवान के अस्तित्व का पूरा ज्ञान विवेकानंद को दिया। 1885 में रामकृष्ण परमहंस को गले का कैंसर हो गया।


रामकृष्ण परमहंस ने अपने अंतिम दिनों में सिखाया की मनुष्य की सेवा करना ही भगवान की सबसे बड़ी पूजा है। रामकृष्ण ने नरेन्द्र को अपने मठवासियों का ध्यान रखने को कहा और अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इसके बाद 1886 में रामकृष्ण परमहंस का निधन हो गया।


स्वामी विवेकानंद के शिक्षा पर विचार


स्वामी विवेकानंद का शिक्षा पर विचार ये था कि शिक्षा दूसरों की मदद करने के लिए होना चाहिए। जो शिक्षा किसी की मदद न करके किसी का शोषण करें उस शिक्षा को ग्रहण करना पाप है। वैसी शिक्षा से दूर ही रहना चाहिए।


स्वामी विवेकानंद की किताबें | Swami Vivekananda Books


स्वामी विवेकानंद ने वेदों के ज्ञान को एक साधारण भाषा में समझाया। स्वामी विवेकानंद ने कई बुक लिखी।
स्वामी विवेकानंद की प्रमुख पुस्तकें:
● कर्मयोग
● भक्तियोग
● राजयोग
● ज्ञानयोग
● प्रेमयोग
● मेरा जीवन तथा ध्येय


स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण | Swami Vivekananda Speech In Shikago in Hindi


सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले स्वामी विवेकानंद जी को जब कभी भी याद किया जायेगा उनकी अमेरिका में दी गयी यादगार भाषण को भी याद किया जायेगा। उनकी एक भाषण ने भारत की अतुल्य विरासत और ज्ञान का डंका पूरी दुनिया में बजा दिया था।


अधिकांश लोग जानते हैं कि स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण शुन्य पर था। लेकिन बेहद कम लोगों को ये बात पता होगी जिन्हें ये मालूम होगा कि उन्होंने शुन्य पर ही भाषण क्यों दिया था।


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आज बात करूंगा स्वामी विवेकानंद अमेरिका भाषण के बारे में जिनको सुनकर पूरी दुनिया उनके सामने नतमस्क हो गया था। दोस्तों आपके मन मे ये सवाल जरूर उठता होगा की उन्होंने शून्य पर ही भाषण क्यों दिया था ?


ये बहुत ही दिलचस्प कहानी है। जब स्वामी विवेकानंद सन 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने गए थे। जब वो वहाँ पहुंचे तो आयोजकों ने उनके नाम के आगे शून्य लिख दिया था।


जानकारी के मुताबिक ऐसा इसलिए किया गया था क्योंकि कुछ लोग उन्हें परेशान करना चाहते थे और ये बताना चाहते थे कि भारत तो शून्य है वहाँ कुछ भी नहीं है। स्वामी विवेकानंद ने ये सब देखकर पूरी बात को अच्छे से भाप गए थे।


जहाँ पर स्वामी विवेकानंद ने ऐतिहासिक भाषण दिया। विवेकानंद ने अपनी शुरुआती भाषण “अमेरिका के भाइयों और बहनों ( Brother and Sister of America)” कहते ही वहाँ उपस्थित विश्व के लगभग 6 हजार विद्वानों ने करीब दो मिनट तक लगातार तालियां बजायी।


अगले दिन सभी अखबारों ने ये घोषणा की की स्वामी विवेकानंद का भाषण सबसे अच्छा भाषण था। जिसके बाद पूरी दुनिया विवेकानंद और भारत को जानने लगा। इससे पहले अमेरिका पर इस तरह का प्रभाव कभी किसी हिंदू ने नहीं डाला था। विवेकानंद अमेरिका में दो साल तक रहे। इन दो सालों में उन्होंने हिंदू धर्म का विश्व बन्धुत्व का संदेश वहाँ के लोगों तक पहुँचाया।


अमेरिका के बाद स्वामी विवेकानंद इंग्लैंड गए। वहाँ की एक लेडीज मार्ग्रेट नोबेल उनकी फॉलोवर बनी जो बाद में सिस्टर निवेदिता के नाम से प्रसिद्ध हुई। 1897 में उन्होंने स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।


Swami Vivekananda Thoughts In Hindi | स्वामी विवेकानंद के सामाजिक कार्य

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स्वामी विवेकानंद के विचार


स्वामी विवेकानंद की जीवनी से हमें ये महत्वपूर्ण बातें जरूर सीखनी चाहिए।


संस्कृति वस्त्रों में नहीं चरित्रों में होता है

एक बार जब स्वामी विवेकानंद विदेश गए तो उनके वस्त्र और पगड़ी देख कर लोगों ने पूछा आपका बाकी समान कहाँ है। उन्होंने जवाब दिया बस यहीं समान है। ये सुनकर कुछ लोगों ने उनका मजाक उड़ाया। ये आपकी कैसी संस्कृति है ? तन पर केवल एक चादर लपेट रखी है।


इस पर स्वामी विवेकानंद मुस्कुराकर बोले आपकी संस्कृति हमारी संस्कृति से बिल्कुल अलग है। आपका दर्जी आपकी संस्कृति का निर्माण करते हैं जबकि हमारा चरित्र हमारी संस्कृति का निर्माण करता है। संस्कृति वस्त्रों में नहीं होता है बल्कि चरित्र के विकास में होता है।


● दूसरों का सम्मान करो (Respect others)

बात उस समय की है जब स्वामी विवेकानंद विदेश गए थे। कई लोग उनके स्वागत करने के लिए आये हुए थे। उनलोगों ने स्वामी विवेकानंद से हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया और अंग्रेजी में हेलो कहा।


जिसके जवाब में स्वामी विवेकानंद ने अपने दोनों हाथ जोड़कर  उनको नमस्ते कहा। जिससे उनलोगों को लगा शायद उनको इंग्लिश नहीं आती है।


तभी उनलोगों में से एक आदमी ने पूछा आप कैसे हैं ? तब उन्होंने कहा – I am fine. Thank you. उनलोगों को सुनकर बहुत हैरानी हुई। सबने पूछा जब हमने आपसे इंग्लिश में बात करनी चाही तब आपने हिंदी में उतर दिया। और जब हमने हिंदी में पूछा तब आपने इंग्लिश में उतर दिया इसका क्या मतलब है?


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तब स्वामी विवेकानंद ने जवाब दिया जब आपने अपनी माँ का सम्मान किया तब मैं भी अपनी माँ का सम्मान किया और जब आपने मेरी माँ का सम्मान किया तब मैंने आपकी माँ का सम्मान किया।


● देने का आनंद लेने के आनंद से बड़ा होता है

बात उस समय की है जब स्वामी विवेकानंद जब अमेरिका गए हुए थे। उस समय वो एक महिला के घर मे ठहरे हुए थे। साथियों विवेकानंद अपने हाथों से अपना भोजन खुद ही पकाते थे। एक बार वो खाना खाने की तैयारी कर रहे थे तभी कुछ बच्चे पास आकर खड़े हो गए।


उनके पास सामान्यतः बच्चों का आना जाना लगा रहा था। बच्चे भूखे थे। उन्होंने अपनी सारी रोटियाँ बच्चों में एक-एक कर बाँट दी। महिला वहीं बैठे ये सब ध्यान लगाकर देख रही थी। उसे ये देख बड़ा आश्चर्य हुआ। अंत में जब उससे रहा नहीं गया तो उसने विवेकानंद से पूछा आपने सारी रोटियां तो बच्चों में बाँट दी अब आपके लिए तो कुछ बचा ही नहीं आप क्या खाएंगे?


उन्होंने प्रसन्न होकर कहा- रोटियां तो पेट की ज्वाला शांत करने के लिए होती है चाहे वो मेरे पेट का करे या फिर किसी और का। किसी को देने का आनन्द जो मिलता है वो पाने के आनंद से बड़ा होता है।


● सच्चा पुरुषार्थ

एक विदेशी महिला स्वामी विवेकानंद जी से आकर बोली मैं आपसे शादी करना चाहती हूँ। उन्होंने कहा- मुझसे ही क्यों ? क्या आपको नहीं मालूम कि मैं एक सन्यासी हूँ ?


औरत बोली-मैं आपके जैसा ही गौरवशाली और सुशील पुत्र चाहती हूँ। ये तभी सम्भव होगा जब आप मुझसे शादी करेंगे।
विवेकानंद ने कहा- हमारी शादी तो सम्भव नहीं है परन्तु हाँ एक उपाय है।
औरत बोली- वो क्या ?

विवेकानंद ने कहा- आज से ही आप मुझे अपना पुत्र मान लो और इससे आप मेरी माँ भी बन जाओगी। इस तरह आपको मेरे रूप में मेरे जैसा बेटा मिल जायेगा। वो औरत स्वामी विवेकानंद के इन बातों को सुनकर उनके चरणों मे गिर गयी और बोली आप साक्षात भगवान के रूप है।


● लक्ष्य पर ध्यान दो (Focus on the goal)

स्वामी विवेकानंद अमेरिका में ऐसे ही कहीं रास्ते पर घूम रहे थे। उन्होंने देखा कि कुछ बच्चे नदी में तैर रहे अंडे के छिलकों पर निशाना लगा रहे थे, पर कोई भी लड़का सही निशाना नहीं लगा पा रहा था।


तब उन्होंने एक लड़के से बन्दूक ली और खुद निशाना लगाने लगें। उन्होंने पहला निशाना लगाया और वो निशाना बिल्कुल सही लगा। फिर एक बाद एक कुल बारह निशाना लगाये और सभी बिल्कुल सटीक लगा।


ये देख सभी लड़के ढंग रह गए और उन्होंने स्वामी विवेकानंद से पूछा भला आप ये कैसे कर लेते हैं। उन्होंने जवाब दिया- अगर तुम निशाना लगा रहे हो तो पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर होना चाहिये। एक बार में एक ही काम को करने पर ध्यान दो ऐसा करने से तुम कभी चूकोगे नहीं।


अगर तुम पढ़ाई कर रहे हो तो सिर्फ पढ़ाई के बारे में सोचो। मेरे देश में बच्चों को यहीं करना सिखाया जाता है।


● डर का सामना करो (Face fear)

एक बार स्वामी विवेकानंद एक मंदिर के पास से गुजर रहे थे। तभी उनको ढेड़ सारे बंदरों ने घेर लिया। स्वामी विवेकानंद बंदरों से बचने के लिए भागने लगें और बन्दर उनके पीछे दौड़ने लगे।


पास में खड़े एक वृद्ध सन्यासी व्यक्ति ये सब देख रहा था। उसने उनको रोका और कहा भागो नहीं उन बन्दरों का सामना करो नहीं तो वे और परेशान करेंगे। ऐसा सुन स्वामी विवेकानंद ने पीछे पलटा और बंदरों की तरफ बढ़ने लगें। ऐसा करते ही बन्दर भागने लगें। 


इस घटना से उनको बहुत बड़ी सिख मिली। उन्होंने ये सीखा कि डर से भागने के बजाय उनका सामना करना चाहिए न कि भागना चाहिए। डर से जितना डरोगे वो आपको उतना ही डराएगी। इसलिए डर का सामना डंट कर करना चाहिए।


● हमेशा निडर रहो (Be Fearless)

विवेकानंद बचपन से ही किसी बात को सुनकर नहीं मानते थे। वो किसी भी बात को देखकर या फिर उसको करके ही मानते थे। बचपन में वे अपने दोस्त के साथ बगीचे में खेलने के लिये जाते थे।


वो दोनों हमेशा एक पेड़ पर चढ़ जाते थे। उनदोनों बच्चों को चोट न लग जाये इसलिए उस बच्चे के दादाजी ने कहा-इस पेड़ पर एक बहुत खतरनाक भूत रहता है। जो भी इस पेड़ पर चढ़ता है उसका गर्दन तोड़ देता है।


उन्होंने ये तय कर लिया कि इस बात की पूरी सच्चाई को जानकर ही रहेंगे। इसलिए उन्होंने एक रात उस पेड़ पर चुपचाप चढ़ गए। और पूरी रात इस बात का इंतज़ार करते रहे कि कोई भूत आता है कि नहीं। जब पूरी रात कोई बहुत नहीं आया तो उन्होंने अपने दोस्त को कहा कि इसपर कोई भूत नहीं है।


उनका मानना था कि डर ही इंसान को कमजोर बनाती है और यही इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन है। इसलिए उन्होंने एक बार कहा था अगर इस संसार में कोई पाप जैसी चीज है तो ये कहना एक मात्र पाप है कि मैं कमजोर हूँ या कोई और कमजोर है।


हममे से हम सबके पास न जाने कितने सारे आईडिया है जो अपने लाइफ,समाज,देश की समस्या को खत्म करना चाहते है। लेकिन हम सबको डर रोक देता है कि कहीं हम असफल न हो जाये, इसमें फेल हो गया तो क्या होगा ?


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स्वामी विवेकानंद के एक बात को हमेशा याद रखना वो कहते थे कि अगर तुम डर को हरा नहीं सकते तो डर एक दिन तुमको हरा देगी। अगर तुम अपने डर को बर्बाद नहीं करोगे तो डर एक दिन तुमको बर्बाद कर देगी।


● खुद पर विश्वास रखो (Believe in yourself)

इस बात को ध्यान से पढ़ना। स्वामी विवेकानंद कहते थे कि अगर तुम किसी मकसद के लिए खड़े हो रहे तो पेड़ के जैसे खड़े रहो लेकिन जब गिरो तो बीज की तरह गिरो ताकि फिर से मिटी में मिलकर दुबारा खड़े हो जाओ।


साथियों उनका मकसद था कि अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से मिले ज्ञान को पूरी दुनिया में फैलाना है। इस सफर में उनको कई सारी शारिरिक यातनाएं झेलनी पड़ी लेकिन फिर भी उन्होंने अपने मकसद से पीछे नहीं हटे। क्योंकि उनको खुद पर इतना भरोसा था कि मैं पूरी दुनिया में भारत के ज्ञान को फैला कर रहूंगा।


उन्होंने ये फैसला किया कि शिकागो में 1893 में होने वाले विश्व धर्म सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। शिकागो पहुँचते ही स्वामी विवेकानंद के सामने और बड़ी चुनौतियां आ गयी क्योंकि विश्व धर्म सम्मेलन दो महीने के लिए आगे बढ़ चुका था।


अब उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि दो महीने शिकागो में ठहर सकें। उन्होंने कई रातें सडकों पर गुजारी, कई बार भूखे पेट सोए। उनके अलग पहनावे के वजह से कई लोग उनका मजाक बनाते थे और कई बार तो कुछ लोग उनको मारने भी दौड़ते थे।


लेकिन स्वामी विवेकानंद कभी भी कमजोर नहीं पड़े और न ही कभी चुनातियों के सामने घुटने टेके। वक्त से वी कभी नहीं हारे क्योंकि उनका लक्ष्य सामने था कि विश्व मंच पर भारत को वो सम्मान दिलाना है जिसका वो हकदार है।


हुआ भी वहीं जब स्वामी विवेकानंद विश्व धर्म सम्मेलन के मंच पर ऐसा भाषण दिया कि सुनने वाले हिंदुस्तान और इसके महान संत महानता को सलाम करने लगे। उन्होंने ऐसी स्पीच दी कि पूरी दुनिया में इसकी चर्चा होने लगी जिसको आज भी लोग बड़े गर्व से पढ़ते हैं।


स्वामी विवेकानंद ने ये साबित कर दिया कि अगर खुद पर विश्वास हो तो दुनिया की कोई भी बड़ी से बड़ी ताकत भी तुम्हें रोक नहीं सकती। आपके पास हर काम को करने का प्लान है लेकिन अगर आपको खुद पर विश्वास नहीं होगा तो आप कुछ नहीं कर सकते।


स्वामी विवेकानंद पुण्यतिथि | Swami Vivekananda Death


4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद ने महासमाधि लेकर अपने जीवन का त्याग कर किया। जिसकी भविष्यवाणी उन्होंने पहले ही कर दी थी की वह 40 साल से ज्यादा नहीं जियेंगे। इस तरह स्वामी विवेकानंद पुण्यतिथि 4 जुलाई को मनाई जाती है।


मृत्यु के पहले स्वामी विवेकानंद पैदल ही सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया और एक सन्यासी के जैसा जीवन जिया। अगर विवेकानंद चाहते तो अपनी पूरी जिंदगी अमेरिका या यूरोप के किसी शहर मे ऐशो आराम की जीवन बिता सकते थे।


लेकिन उन्होंने अपने आत्मकथा में कहा है कि मैं एक सन्यासी हूँ। हे भारत देश तुम्हारी सारी कमजोरियों के बावजूद मैं तुम्हें बहुत प्रेम करता हूँ। 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद का जन्मदिन भारत में को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।


स्वामी विवेकानंद के जीवन से प्रभावित होकर दुनिया की कई महान हस्तियों ने अपना शानो शौकत का जीवन छोड़कर विवेकानंद की जीवन शैली को अपनाया और एक सन्यासी के जैसा ऐसा जीवन जिया कि पूरी मानवजाति के लिए मिशाल बन गया।


एक इंसान जिसने सारे सांसारिक सुखों और बन्धनों को तोड़कर स्वयं को बन्धनमुक्त किया। जिसका एक ही प्रेम था उसका देश।


स्वामी विवेकानंद के 20 अनमोल वचन और विचार | Swami vivekananda 20 famous quotes in hindi

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स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन


स्वामी विवेकानंद ने हम सबको ऐसे अनमोल वचन दिये हैं जिसकी पूरी दुनिया अनुसरण करती है, उनसे सिख लेती है।


स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन:

1. दुनिया के सभी धर्म अपने अपने जगह पर सत्य है बस वे एक ही ध्येय की तरफ जाने के अलग-अलग रास्ते हैं।

2. संस्कृति वस्त्रों या फिर वस्तुओं में नहीं होता है बल्कि संस्कृति तो विचारों में होता है।

3. इस दुनिया में असली महात्मा वो है, जो गरीबों और असहाय लोगों के लिए रोता है अन्यथा वो एक पापी है।

4. दूसरों का उपकार करना सबसे बड़ा धर्म है।
लेकिन दूसरों को दुःख देना सबसे बड़ा पाप है।

5. दूसरों के लिए जीवन जीना सबसे अच्छा जीवन जीना होता है।

6. ना तो किसी चीज को खोजो और ना ढूँढो, जो मिलता है ले लो।

7. जो किसी को देना है दे दो, पर बदले में कुछ मत मांगों, जो तुम दे रहे हो वो कभी वापस आएगा कि नहीं ये कभी मत सोचों।

8. हमारे मस्तिष्क की शक्तियां सूर्य की किरणों के समान होती  हैं,जब वो एक जगह केन्द्रित होती हैं, तो चमक उठती हैं।

9. जिस क्षण आपको यह पता चल जायेगा कि ईश्वर कहीं और नहीं आपके अंदर है। उस समय से आपको प्रत्येक व्यक्ति में ईश्वर की छवि नजर आने लगेगी।

10. इस दुनिया जो कुछ भी तुमको शारिरिक, बौद्धिक और मानसिक रूप से कमजोर बनाता है उसे जहर की भांति त्याग कर दो।

11. वे लोग धन्य होते हैं जिनका पूरा जीवन दूसरों की सेवा करने में खत्म हो जाता है।

12. आपका संघर्ष जितना कठिन होगा
आपका जीत उतना ही शानदार होगा।

13. तुम्हे खुद को अंदर से जगाना होगा, दूसरा कोई तुमको सच्चा ज्ञान नहीं दे सकता क्योंकि तुम्हारे आत्मा से बड़ा शिक्षक कोई नहीं है।

14. जिस दिन आपको किसी नई चुनौतियों का सामना न करना पड़े, आप समझ जाओ कि आप गलत रास्ते पर चल रहे हैं।

15. भगवान की पूजा इस जन्म में या अगले जन्म के सारे चीजों से भी बढ़कर होनी चाहिए।

16. तुमको आध्यात्मिक बनने के लिए कहीं पढ़ने जाने की जरूरत नहीं है, तुमको खुद अंदर से ही सब कुछ सीखना है।

17. आप खुद की मदद करना सीखिये, कोई दूसरा तुम्हारा मदद नहीं कर सकता।
इसलिए आप खुद का सबसे अच्छा मित्र भी है और दुश्मन भी।

18. इस दुनिया में जो भी आया है एक दिन सबको मरना है,
इसलिए हमेशा निष्कपट और सदा जीवन जियो।

19. जब तक तुमको अपने आप पर विश्वास नहीं होगा तब तक भगवान भी तुम पर विश्वास नहीं कर सकते।

20. आज आप जो भी है अपने सोच की वजह से है इसलिए आप इस बात का हमेशा ध्यान रखिये की आप क्या सोचते हैं।


साथियों एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचार से हम इतना तो जरूर सिख सकते हैं जिससे हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं।


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