A.P.J Abdul Kalam Biography in Hindi | एपीजे अब्दुल कलाम का जीवन परिचय
आज हम आपसे एक सवाल करेंगे कि क्या आने वाली पीढ़ियों को हम ये कह पाएंगे कि हमने एपीजे अब्दुल कलाम को देखा है ? यकीनन देश के जो हालात है, जिन स्थितियों में ये देश गुजर रहा है उसमें एक शख्स कुछ इस तरीके से ख्वाब लिए चलता है और उसके जरिये जिंदगी जीता है तो लगता है वाकई ये सबकुछ ख्वाब ही तो है।
अब्दुल कलाम साहब के बहाने सपने, उड़ान, या फिर बल देने वाले हौसले जो कहिए। उनकी कामयाबियों के किस्से कौन नहीं जानता मगर साथियों उन कामयाबियों के पीछे क्या गजब की दास्तान होगी संघर्ष की, सादगी की, या फिर समर्पण की।
कलाम साहब आज हमारे बीच नहीं रहे मगर ये किस्से इंसानी नस्ल के सदियों तक प्रेरणा देने वाले हैं। आइए मिसाइल मैन और लोगों के राष्ट्रपति कहे जाने वाले अब्दुल कलाम की ज़िंदगी की कहानी का ये पहलू आपको करीब से बताते हैं।
Success Story Of A.P.J. Abdul Kalam In Hindi | अब्दुल कलाम की प्रेणादायक जीवनी
![]() |
अब्दुल कलाम की जीवनी |
एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में धनुषकोडि गांव में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। रामेश्वरम जो कि पहले मद्रास में था लेकिन अब तमिलनाडु राज्य में है। उनका पूरा नाम अबुल पाकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम था। अब्दुल कलाम के पिता का नाम जैनुल्लाब्दीन है जो एक नाविक थे। जो रामेश्वरम आये हिन्दू तीर्थयात्रियों को एक छोर से दूसरे छोर तक ले जाते थे।
अब्दुल कलाम अपनी दास्ताँ कहते-कहते उस चिर निंद्रा में सो गए जिसमें पलकें फिर कभी नहीं खुलती। वो आँखे जो सिर्फ सपने ही नहीं देखती थी बल्कि उन्हें हकीकत के जमीन पर लाने का हुनर भी सिखाती थी। वो आंखे हमेशा के लिए बंद हो गई मगर सपनों की उड़ान आखिरी सांस के साथ भी नहीं थमी। उड़ान एक लब्ज में कहे तो यही कलाम साहब के ज़िन्दगी का फलसफा था।
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की शिक्षा (A.P.J. Abdul Kalam Education)
विज्ञान से लेकर सपने तक कलाम साहब का एक ही व्याख्यान था – तुम जैसे सपने देखोगे वैसे ही बन जाओगे। शुरुआत होती है सपनों के इसी उड़ान से, जानने की जिज्ञासा से जो आगे चलकर विज्ञान के उड़ान को नई दिशा देने वाली थी।
वो उड़ान थी चिड़ियों की। तब उस समय अब्दुल कलाम 5 वीं क्लास में पढ़ते थे। आसमान में चिड़ियों को उड़ते देखना उन्हें खूब भाता था। एक दिन क्लास में उन्होंने टीचर से पूछा- आखिर ये चिड़िया उड़ती कैसे है?
सवाल बहुत सहज था। जो हर किसी के मन में उठता है मगर इसका जवाब कोई नहीं दे पाया। वो टीचर थे सुब्रमण्यम अय्यर। जिनका जिक्र कलाम साहब हमेशा करते रहते थे। एयरोस्पेस में उनके आने की प्रेरणा कलाम साहब उन्ही को बताते थे।
कलाम साहब के मुताबिक उनके सवाल के जवाब को समझाने के लिए सुब्रमण्यम अय्यर पूरी क्लास के बच्चों को समुद्र के किनारे ले गए। और उड़ते हुए पक्षियों को दिखा कर पूरी तकनिक बतायी। इसके पीछे पक्षियों के शरीर की बनावट भी विस्तार से बतायी।
ये भी पढ़ें:- खून खौला देने वाली भगत सिंह की कहानी
नन्हे कलाम को सिर्फ इस सवाल का जवाब ही नहीं मिला बल्कि उसके साथ-साथ मासूम आँखों को एक सपना भी मिल गया था। उड़ान का सम्मोहन उनकी ज़िंदगी में हमेशा-हमेशा के लिए बस गया। लेकिन वो सपना सच कैसे होता ?
हालात तो ऐसे थे कि पतंग भी बड़ी मुश्किल से उड़ाने को मिलती थी। शुरू से ही उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बिल्कुल भी ठीक नहीं थी। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने की वजह से अब्दुल कलाम को छोटी उम्र में ही काम करना पड़ा।
7 भाई-बहनों में बहुत दुलारे तो थे अब्दुल कलाम मगर घर की माली हालत ऐसी की दो वक्त की खाने की भी चिंता रोज रहती। नन्हे कलाम को रोटियाँ खाना बेहद पसन्द था। जबकि उस इलाके में चावल की फसल बहुत ज्यादा होती थी। लेकिन माँ उनके लिए दो रोटियों का इंतजाम रोज कर देती थी।
एक दिन माँ ने उन्हें अपने हिस्से का रोटी कलाम को पड़ोस दी। अब्दुल कलाम को जब ये बात अपने भाई से पता चला तो वे बेहद भावुक हो गए।
माँ से पहले खाना फिर भी उन्हें गंवारा नहीं हुआ। दस-बारह साल के होते-होते अब्दुल कलाम को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास पुरा हो गया था। पिता जैनुल्लाब्दीन पेशे से नाविक थे। रामेश्वरम आने-जाने वाले तीर्थ यात्रियों को नाव किराए पर देते थे। लेकिन एक बार चक्रवात में वो नाव भी टूट गयी। पढ़ाई जारी रखने के साथ घर का खर्चा भी चलता रहे इसके लिए साईकल से अखबार बेचते। इसी दौरान कलाम पूरा अखबार भी पढ़ जाते थे।
कलाम साहब की पढ़ने की ललक इतनी की रोज सुबह 4 बजे ही उठ जाते और नहा धोकर गणित का ट्यूशन पढ़ने जाते थे। सुबह-सुबह नहाने की वजह ये थी कि गणित के शिक्षक उन्ही 5 बच्चों को मुफ्त में पढ़ाते थे जो सुबह 4 बजे नहा कर आते थे। 5 बजे ट्यूशन से लौटने के बाद अब्दुल कलाम घर से 3 किलोमीटर दूर धनुषकोडि नामक रेलवे स्टेशन जाकर अखबार ले आते और घूम -घूम कर अखबार बेचते थे।
अखबार बेच कर आने के बाद कलाम स्कूल जाते और जब शाम को घर लौटते थे तो अखबार की पैसों की वसूली के लिए जाते थे। थकान को अपने सपनों के आगे कभी आड़े आने नहीं दिया। अब्दुल कलाम साहब कहते थे जब मैं अखबार बाँट कर घर आता था तो माँ के हाथ का बना नाश्ता तैयार मिलता था। पढ़ाई के प्रति मेरे लगन को देख कर मेरी माँ ने मेरे लिए एक छोटा सा लैम्प खरीदा था। ताकि मैं रात को 11 बजे तक पढ़ सकूँ।
उनके अंदर कुछ नया सीखने की भूख हमेशा रहती थी। अब्दुल कलाम स्कूल की पढ़ाई पास के ही एक साधारण स्कूल से पूरी की। उसके बाद कलाम साहब तिरुचिरापल्ली के सेंट जोसेफ कॉलेज में एडमिशन कराया। जहाँ से उन्होंने 1954 में भौतिक विज्ञान से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी किया।
उनके पढ़ने-लिखने की शौक के वजह से उन्होंने पढ़ाई बंद नहीं की। परिवार के आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के बावजूद भी उनके पढ़ने के लिए लगन और मेहनत को देखते हुए उनके घरवालों ने कलाम का पूरा सपोर्ट किया। और आगे की पढ़ाई भी करवाई।
पढ़ाई के साथ पक्षियों के उड़ने से जगा सपना हमेशा युवा अब्दुल कलाम की आंखों में तैरता रहा। तब वो एयरफोर्स में भर्ती होना चाहते थे।
अब्दुल कलाम का ख्वाहिश था पायलट बनने का लेकिन ये सपना पुरी नहीं हुई। क्योंकि तब केवल 8 लोगों का भर्ती होनी थी लेकिन टेस्ट में अब्दुल कलाम का स्थान 9 वे नम्बर पर आया। सपना पूरा नहीं हुआ मगर उस नाकामी के बाद कलाम साहब के उड़ान का जोश दोगुना हो गया।
अब के इस पीढ़ी से पूछियेगा तो कहेगा सपने तो देखने चाहिए लेकिन कलाम साहब कहते थे ‘सपना वो नहीं जो नींद में आये बल्कि सपना तो वो है जो नींद ही न आने दे।’ युवा अब्दुल कलाम का सपना नींद का सपना नहीं बल्कि जागती हुई आंखों का सच था। एक ऐसा सच जिसके लिए संघर्ष चाहिए, पढ़ाई, विज्ञान की ललक, लगन सब कुछ चाहिए।
वह पढ़ाई के लिए 1955 में मद्रास आ गए। जहाँ उन्होंने तीन रात तक जग कर अपना थीसिस पूरी किया ताकि मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में स्कॉलरशिप मिल सके।
ये भी पढ़ें:- भारत के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जीवनी।
मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से उन्होंने अतंरिक्ष विज्ञान(एयरोस्पेस) से इंजीनियरिंग की पढ़ाई किया। स्थिति इतनी भर नहीं है। डिग्री मिली तो उसके बाद स्पेस साइंस की दिशा में बढ़ते गए। लेकिन सवाल इतना भर नहीं है। आसमां सामने खड़ा था लेकिन पांव जमीन से हिल नहीं रहे थे।
एपीजे अब्दुल कलाम का कैरियर और उनकी खोज (Abdul kalam Career):
![]() |
अब्दुल कलाम का कैरियर |
डॉ कलाम का मतलब यही था। बारिश में सभी चिड़िया बसेरा ढूंढती है मगर बाज बारिश से बचने के लिए बादलों के ऊपर उड़ान भरता है। कलाम साहब के फितरत में कुछ ऐसी ही बसती थी कुदरत। विज्ञान की बुलंदियां कुछ इन्ही दलीलों से हासिल की गई। हौसले की उड़ान कुछ ऐसे ही तय की गई।
साथियों अब्दुल कलाम इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन यानी DRDO में वैज्ञानिक के पद पर चुने गए। वहाँ अपना कैरियर भारतीय वायुसेना के लिए एक छोटे से हेलिकॉप्टर का डिज़ाइन बना कर शुरुआत किया।
लेकिन DRDO में काम करके उन्हें सन्तुष्टि नहीं मिल रही थी। DRDO में एक सीमित काम होता था जो कि रोज-रोज दोहराना होता था। और कलाम साहब एक सीमित काम तक बंधे नहीं रहना चाहते थे।
कुछ वर्षों तक काम करने के बाद 1969 में उनका ट्रांसफर भारतीय अनुसंधान परीक्षण संगठन ISRO में हो गया। यहाँ पर कलाम साहब भारती के सैटेलाइट लांच परियोजना के डायरेक्टर के पद पर नियुक्त किए गए थे। उस परियोजना को उन्होंने बखूबी सफलतापूर्वक पूरा किया।
तभी कलाम साहब को यह एहसास होने लगा कि शायद मैं इसी काम के लिए बना हूँ। उसके बाद से कलाम साहब कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक शक्तिशाली मिसाइलें भारत को अपने दम पर दिया। और दुनिया को दिखा दिया कि हम भारतीय भी किसी से कम नहीं है।
कलाम साहब के नाम देश के पहले लॉन्च व्हीकल से लेकर परमाणु परीक्षण और 5000 किलोमीटर की दूरी तक मार करने वाली अग्नि मिसाइल तक तमाम कामयाबियां है। मगर इन्हें हासिल करने का जज्बा इंसानी इच्छा शक्ति की मिसाल बन गया।
एपीजे अब्दुल कलाम की असली कहानी की शुरुआत होती है 1960 से जब युवा सपनों को आकार देने के लिए अब्दुल कलाम दिल्ली आए और रक्षा मंत्रालय के तकनीकी विकास और अनुसंधान विभाग में बतौर वरिष्ठ वैज्ञानिक का कर्यभार सम्भाला। इस दौरान उन्होंने सेना के लिए छोटा हेलीकॉप्टर डिज़ाइन किया। सुपरसोनिक लक्ष्य भेदी विमान का तैयार किया।
सपनों की वही उड़ान 1969 में नया मोड़ लेती है। जब अब्दुल कलाम इसरो में देश के पहले स्पेस लॉन्च व्हीकल प्रोजेक्ट के डायरेक्टर बना कर भेजे गए। तब अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान नया नया ही बना था।
अब्दुल कलाम के साथ तमाम वैज्ञानिक रॉकेट और प्रोजेक्ट के दूसरे समान साईकल और बैलगाड़ियों से साइट ले जाते थे। 70 कि पूरे दशक में सपनों के लिए संघर्ष कुछ ऐसे ही चला। राजा रमन्ना जैसे सीनियर के साथ वो पहले परमाणु परीक्षण के गवाह बने।
ये भी पढ़ें:- रतन टाटा की जीवन कहानी। बर्तन धोने से लेकर फोर्ड कम्पनी को झुकाने तक की कहानी
देश के पहले बैलिस्टिक मिसाइल को कलाम साहब ने ही डायरेक्ट किया। कामयाबी की पहली उड़ान 1980 में भरी। जब रोहिणी नाम का सैटेलाइट धरती की कक्षा में स्थापित कर दिया।
साथियों कलाम साहब के उस कामयाबी से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी खासी प्रभावित हुई। उन्ही की सलाह पर एडवांस और गाइडेड मिसाइल प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ। कहा जाता है कैबिनेट ने उस प्रोजेक्ट को मंजूरी नहीं दी।
लेकिन इंदिरा गांधी ने अब्दुल कलाम के उस मिसाइल प्रोजेक्ट के लिए सीक्रेट फंड का इंतजाम किया। आज की अग्नि, ब्रम्हा, पृथ्वी और ब्रह्मोस जैसी मिसाइल उसी बुनियाद पर हिंदुस्तान की ताकत का परचम लहरा रहे हैं।
दुनिया 11 और 13 मई 1998 का वो दिन कैसे भूल सकती है जब तमाम बन्दिशों और अमेरिका जैसे देश के जासूसी सैटेलाइटों के निगरानी के बावजूद भारत पोखरण में परमाणु परीक्षण करने में सफल रहा। ये भी कलाम साहब की ही काबिलियत थी कि दुनिया को इसकी भनक तक नहीं लगी। तब कलाम साहब प्रधानमंत्री के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार थे।
हालांकि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें मंत्री बनने का अवसर दिया लेकिन कलाम साहब ने मना कर दिया। उनकी योजना तो देश को परमाणु ताकत के आधुनिक पहलुओं से लैस करने की थी।
मार्च 1998 में वे पूरे प्रोजेक्ट के साथ प्रधानमंत्री से मिले और न्युक्लियर मिसाइल प्रोग्राम के बारे में जानकारी दी। उसी मुलाकात में परमाणु परीक्षण को मंजूरी मिल गयी। उस प्रोजेक्ट का नाम ऑपरेशन शक्ति और कलाम का कोड नाम मेजर पृथ्वीराज दिया गया।
टेस्ट की तैयारियों के साथ चुनौती एक और भी थी। अमेरिकी सैटेलाइट को भनक तक नहीं लगने की। इसके लिए कलाम साहब अपनी टीम के साथ रात में काम करते थे। पोखरण साइट पर जाने के लिए अलग-अलग रास्तों का इस्तेमाल करते थे।
टेस्ट से पहले अमेरिका के जासूसी उपग्रहों को गुमराह करने के लिए पोखरण से दूर अलग इलाके में सेना की गतिविधियां बढ़वा दिया ताकि अमेरिकी उपग्रहों का ध्यान उस ओर चला जाये।
11 मई को पहले टेस्ट और 13 मई को तीन और टेस्ट तक दुनिया को इसकी भनक तक नहीं लगा। और जब भनक लगी तब तक अब्दुल कलाम पूरे हिंदुस्तान के परमाणु शक्ति के महानायक बन चुके थे।
यहाँ आप सबसे एक बात पूछना चाहूंगा रवीन्द्र नाथ टैगोर थे जिन्होंने महात्मा गांधी को महात्मा शब्द से अलंकृत किया था। लेकिन इस दौर में अब्दुल कलाम को किस शब्द के साथ नाम जोड़ेंगे ये सब आपलोग तय कीजिए। लेकिन एक बात जरूर कहूंगा कामयाबियां उनके पीछे थी। एक के बाद एक फिर इसके बाद जुड़ती हुई चली गयी।
ये भी पढ़ें:- महात्मा गांधी की पूरी असलियत यहाँ जानें।
अब्दुल कलाम के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी और उनकी आत्मकथा
![]() |
अब्दुल कलाम के राष्ट्रपति बनने का सफर |
इतने महान व्यक्ति होते हुए भी उनके पास न अपना घर, न अपनी खरीदी हुई जमीन, न कोई गाड़ी था। राष्ट्रपति बनने के बाद जो भी था वह भी दान में दे दिया। दो सूटकेस के साथ जब 2002 में राष्ट्रपति भवन आये थे और यूंही उसमें से वापस भी आ गए। देश के संवैधानिक प्रमुख रहे शख्श की जिंदगी में सादगी की ये मिसाल किस रूप में कैसे चलती गई देखिए जरा।
हिंदुस्तान के सामरिक ताकत एयर अंतरिक्ष में तकनीकी उड़ान के नायक अब्दुल कलाम जब देश के राष्ट्रपति बने तब चर्चा एक ही थी मिसाईल मैन की सादगी। देश के प्रति समर्पण तो दुनिया पहले ही देख चुकी थी। सुर्खियों में थी तो बस सादगी।
वो सादगी उनकी पूरी शख्सियत में दिखती थी। मगर ये कहानी तो तब शायद ही किसी को पता चली। जब राष्ट्रपति बने तो दो सूटकेस में राष्ट्रपति भवन में आये थे और जब राष्ट्रपति भवन से वापस गए तो भी दो सूटकेस और कुछ किताबें थी।
जब अब्दुल कलाम 2002 में राष्ट्रपति बने तब मिलिट्री की कई ट्रक्स, वैन आदि गाड़ियां एशियाड विलेज गए जहाँ कलाम साहब भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के रूप रहते थे। वे लोग समझते थे कि राष्ट्रपति जा रहे हैं तो बहुत कुछ समान होगा।
इतनी गाडियों का काफिला देख कर कलाम साहब ने कहा भाई आपलोग मेरे लिए इतनी तकलीफ क्यों की मेरे पास तो सिर्फ दो सूटकेस है जो कार में रख कर चले जायेंगे।
साथियों राष्ट्रपति भवन में दो सूटकेस के साथ आये और 5 साल बाद इसी तरह वहाँ से विदा भी हुए कलाम साहब। लेकिन कलाम साहब राष्ट्रपति भवन में अपने साथ कई चीजें बदल गए।
75 साल पुराने किचन के बर्तन को सहेजकर किचन म्यूजियम बनवाया। अशोक हॉल को नए सिरे से सुसज्जित किया। बच्चों से आये तोहफों को सहेजकर अलग संग्रहालय बनवाया। मुगल गार्डन की सैर करने वालों के लिए पानी और स्नेक्स का इंतजाम करवाया। वो बदलाव आज भी दिखता है।
राष्ट्रपति भवन में अब्दुल कलाम के कुछ नौकर आज भी कहते हैं कि हमलोग कलाम साहब के साथ 5 साल तक रहे कभी एक बार भी उन्होंने ये महसूस नहीं होने दिया कि हमलोग राष्ट्रपति के पास नौकरी कर रहे हैं।
ये भी पढ़ें:- बिल गेट्स की जीवनी। एक साधारण आदमी कैसे बना दुनिया का सबसे अमीर इंसान
उनके नौकर कहते हैं कि कलाम साहब हमलोगों को ऐसे अपने पास रखते थे जैसे माता पिता अपने बच्चों को अपने पास रखते हैं। उनकी महानता के इस बात का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि उनके नौकरों के बच्चे भी हमेशा उनसे मिलते रहते थे, उनको गुडबाय बोलते मतलब एकदम अपने बच्चों के जैसे व्यवहार करते थे।
उनके मरने की खबर सुनने के बाद तो मानो पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गयी। ऐसा होता भी क्यों नहीं देश ने अपने सबसे महान और सच्चे सपूत को जो खोया था। कलाम साहब सदा जीवन और उच्च विचार की जीती जागती मिसाल बने रहे। राष्ट्रपति बनने के बाद तो अपनी बची खुची सम्पत्ति भी उन्होंने दान कर दिया।
किसी ने उनसे पूछा कि अपने बची खुची सम्पत्ति क्यों दान कर दी कलाम साहब कहते कि अब मैं राष्ट्रपति बन गया हूं मेरी देखभाल तो आजीवन अब सरकार करेगी। अब मैं अपनी बचत और वेतन का क्या करूँगा ?
जब तक राष्ट्रपति भवन में कलाम साहब रहे मिलने आने वाले करीबियों और रिश्तेदारों पर खर्च खुद अपना किया। उन्होंने राष्ट्रपति भवन के कर्मचारियों से कह दिया था मिलने वाले जितने भी करीबी आये रिश्तेदार आये उन सबका बिल मेरे खाते से भरा जाये क्योंकि वे सब मेरे मेहमान है।
राष्ट्रपति भवन की गाड़ियां भी उनके रिश्तेदारों को लेने नहीं गयी। कलाम साहब हमारे दिल में बसे भी क्यों नहीं उन्होंने राष्ट्रपति होते हुए भी अपने करीबियों को रेलवे स्टेशन से लाने के लिए खुद टैक्सी का इंतजाम किया जबकि वो चाहते तो राष्ट्रपति भवन की गाड़ियां भेज सकते थे।
कलाम साहब की सादगी का एक पहलू और था राष्ट्रपति भवन के पशु पक्षियों से उनको काफी लगाव था। मोर से लेकर घोड़े तक अपने सामने खड़े रहकर उनका इलाज कराया। कलाम साहब के बारे में कहा जाता है कि एक बार सेना के एक घोड़े को आंख से दिखना बंद हो गया तो वेटनरी स्पेशलिस्ट से उस घोड़े के आंख का ऑपरेशन करवाया। एक मोर का पांव टूट गया तो उसकी प्लास्टर पट्टी करवाई।
2007 में राष्ट्रपति के तौर पर कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्होंने खुद को बच्चों और युवाओं के लिए समर्पित कर दिया और होनी को देखिए मौत भी आई तो उन्ही युवाओं के बीच जिनकी ऊर्जा कलाम साहब 84 की उम्र में भी महसूस करते थे।
अब्दुल कलाम को सम्मानित किया गया पुरस्कार (Abdul Kalam Awards)
उनके पूरे जीवन काल में असीमित उपलब्धियों के लिए अब्दुल कलाम को अनेकों पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। जिनमें से कुछ प्राप्त बड़े पुरस्कार इस प्रकार है-
● 1981: पदम् भूषण
● 1990: पदम् विभूषण
● 1997: भारत रत्न
● 1997: इंदिरा गांधी अवार्ड
● 1998: वीर सावरकर अवार्ड
● 2013: वरुण धवन अवार्ड
एपीजे अब्दुल कलाम की मृत्यु
27 जुलाई 2015 को अध्यापन कार्य के दैरान ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा और हम सबको छोड़कर इस दुनिया से चले गए। अब्दुल कलाम का कहना है कि जीवन की कठिनाइयां हमको बर्बाद नहीं करती है बल्कि यह हमारे अंदर की छुपी हुई सामर्थ्य और शक्तियों को बाहर निकालने में मदद करती है। आप अपने कठिनाइयों को यह बता दो कि आप उससे भी ज्यादा कठिन है।
साथियों आखिरी सांस के साथ उनको अपने देश की ही चिंता बनी रही और उनमें से एक बड़ी चिंता थी कि देश की संसद कैसे सुचारू रूप से चले। ये बात ओईएम शिलॉन्ग के एक स्टूडेंट से पूछने ही वाले थे मगर ज़िन्दगी की डोर बीच मे ही टूट गयी।
ये सवाल अब देश के राजनेताओं के सामने है। अब ये सवाल है- क्या उनकी ये इच्छा देश के राजनेता पूरी कर पायेंगे ? और एक बार फिर कहता हूँ कि हम आने वाले पीढ़ियों को कह पायेंगे कि हमने अब्दुल कलाम को देखा है।
आपको डॉ अब्दुल कलाम की जीवनी कैसी लगी और आपको क्या सिख देती है। कमेंट करके अपनी राय जरूर दें। साथियों अगर अब्दुल कलाम की कहानी आपको प्रेरणा देती है तो आप इसे जरूर शेयर कीजिये ताकि हर कोई इनसे कुछ न कुछ सिख ले।
धन्यवाद।