महाभारत पुराण का रहस्मयी युद्ध कथा | पौराणिक कथाएं इन हिंदी | Hindu Mythological Story In Hindi
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Indian Mythological Stories In Hindi |
धर्मग्रंथ महाभारत में ऐसी बहुत सी रहस्मयी कथाओं का वर्णन मिलता है जिसे अगर मनुष्य अपने जीवन में उतार लें तो उसे ना ही खुद पर कभी अहंकार हो सकता है और ना ही वो खुद को कभी भी शर्वशक्तिमान समझ सकता है।
आज के इस हिंदी कहानी में हम आपको महाभारत से जुड़ी एक ऐसी ही रहस्यमयी पौराणिक कथा के बारे में बताने वाले हैं। इस कथा के माध्यम से हम जानेंगे कि जब महाभारत युद्ध में पांडवों को विजय मिली तो पांचों पाण्डव खुद को अपने विजय का श्रेय देने लगे।
अर्थात युद्ध में विजय प्राप्त करने के कारण पांचों पांडवों को अपने बल पर अहंकार हो गया था। तब श्रीकृष्ण ने उनका अहंकार दूर करने के लिए क्या किया इस रहस्यमयी पौराणिक कहानी के माध्यम से पूरी विस्तार से जानते हैं।
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स्कन्दपुराण के महेश्वरखण्ड के कुमारिका खण्ड के अनुसार ये रहस्यमयी पौराणिक कहानी उस समय की है जब कौरव और पांडव अपनी-अपनी सेनाओं सहित कुरुक्षेत्र में होने वाले महाभारत युद्ध के लिए एकत्रित हो चुके थे। दोनों ही सेनाओं में इस बात की चर्चा हो रही थी कि कल से शुरू होने वाला युद्ध कितने दिनों में समाप्त होगा और इस युद्ध में कौन विजयी होगा?
उधर इस बात की जानकारी जब घटोत्कच के पुत्र और भीम के पौत्र बर्बरीक को मिली तो वो अपनी माँ से युद्ध में शामिल होने की आज्ञा लेकर कुरुक्षेत्र के मैदान में पांडवों के शिविर में पहुँच गया। वहाँ पहुँचकर बर्बरीक सबसे पहले श्रीकृष्ण को प्रणाम किया और फिर बारी-बारी से पांचों पांडवों के चरण स्पर्श किये।
उसी समय पांडवों के शिविर में एक गुप्तचर आया और उसने महाराज युधिष्ठिर को प्रणाम करते हुए कहा कि महाराज! अभी मैं कौरवों के शिविर में गया था। वहाँ मैंने सुना कि राजकुमार दुर्योधन अपने पक्ष के महारथियों से चर्चा कर रहे थे कि कौन सा योद्धा कितने दिनों में सेना सहित पांडवों का वध कर सकता है।
जिसके बाद सर्वप्रथम आपके पितामहः भीष्म ने कहा कि वह आप पांचों भाइयों को सेना सहित एक महीने में समाप्त कर सकते हैं। फिर गुरु द्रोणाचार्य ने कहा कि मैं सेना सहित पांचों पांडवों को पन्द्रह दिन में समाप्त कर सकता हूँ। इसके बाद अश्वत्थामा ने कहा कि वह आपके पांचों भाइयों को सेना सहित दस दिन में समाप्त कर सकते हैं। अगर अंगराज कर्ण के बातों पर विश्वास करें तो आप सभी को वह केवल छः दिनों में मार सकते हैं।
गुप्तचर की ये सब बातें सुनकर युधिष्ठिर चिंतित हो गए और उन्होंने गुप्तचर को शिविर से बाहर जाने को कहा। फिर जब गुप्तचर बाहर चला गया तो युधिष्ठिर ने अपने चारों भाइयों से पूछा कि अनुज! तुमलोग इस युद्ध को कितने दिनों में समाप्त कर सकते हो?
अपने ज्येष्ठ के मुख से ऐसी बात सूनकर चारों भाई एक दूसरे को देखने लगें। उनलोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि इस प्रश्न का क्या उत्तर दिया जाए? तब अर्जुन ने कहा कि भीष्म और गुरु द्रोणाचार्य ने जो घोषणा की है वह सर्वथा असत्य है क्योंकि युद्घ में जय और पराजय का पहले से किया हुआ निश्चय ही झूठा होता है। आपके पक्ष में जो भी योद्धा युद्ध के लिए युद्धभूमि में जाने वाले हैं इनमें से एक भी सारी कौरव सेना का संहार कर सकता है।
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हे ज्येष्ठ! हमारे पक्ष के योद्धाओं के डर से कौरव और उनकी सेना इस प्रकार भाग जाएंगे जैसे सिंह के डर से मृग भाग जाता है। बूढ़े पितामह भीष्म, गुरु द्रोण और कृपाचार्य तथा अश्वत्थामा से हमें कोई भय करने की जरूरत नहीं है। फिर भी यदि आपके चित को शांति नहीं मिल रहा है तो मैं आपको बता दूँ कि मैं अकेला ही युद्ध में सेना सहित समस्त कौरवों को एक ही दिन में नष्ट कर सकता हूँ।
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अर्जुन के मुह से ऐसी बातें सुनकर शिविर में मौजूद घटोत्कच पुत्र बर्बरीक से रहा नहीं गया। उसने अर्जुन से कहा कि पितामह अभी आपने जो कहा है वो सही नहीं है क्योंकि मैं सेना सहित कौरवों को कुछ ही पलों में नष्ट कर सकता हूँ।
बर्बरीक के मुख से ऐसी बातें सुनकर शिविर में मौजूद सभी योद्धा आश्चर्यचकित हो गए। अर्जुन की आँखे लज्जा से झुक गयी। तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- पार्थ बर्बरीक ने अपनी शक्ति के अनुरूप ही बात कही है क्योंकि इसके पास ऐसी शक्ति मौजूद है जो कुछ पल में ही होने वाले इस युद्ध को समाप्त कर सकता है।
फिर भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि हे वत्स! भीष्म, द्रोण और कर्ण जैसे महारथियों से सुसज्जित कौरवों की सेना को तुम इतना शीघ्र कैसे परास्त कर सकते हो? तुम्हारे पास ऐसा कौन सा अस्त्र है? कृपा करके हमें भी बताओ।
तब बर्बरीक ने भगवान श्रीकृष्ण से दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा कि प्रभु मेरे तरकस में जो तीन बाण आप देख रहे हैं इन्हीं बाणों की सहायता से मैं पल भर में अपने शत्रुओं को नष्ट कर सकता हूँ। तब श्रीकृष्ण बोले हे बर्बरीक! मैं कहने पर विश्वास नहीं करता, मुझे इसका प्रमाण चाहिए। तब बर्बरीक ने कहा- हे प्रभु! आप ही बताइए कि मैं आपके सामने खुद को किस प्रकार प्रमाणित करूँ।
इसके बाद शिविर में मौजूद पांचों पाण्डव, भीम पुत्र घटोत्कच और बर्बरीक को श्रीकृष्ण एक ऐसे स्थान पर ले गए जहाँ पर पहले से ही एक विशाल बरगद का पेड़ था। वहाँ पहुँचकर श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से कहा- ये पीपल का पेड़ देख रहे हो। इस पेड़ में जितने भी सूखे पते लगे हुए हैं वहीं तुम्हारा लक्ष्य है। अगर तुम इन तीन बाणों से अपने लक्ष्य को भेद दिया तो हमें तुम्हारे वीरता पर कोई संदेह नहीं रहेगा।
भगवान श्रीकृष्ण की बातें सुनकर बर्बरीक ने कहा- आपकी जैसी आज्ञा प्रभु। फिर उसने अपने तरकस से लक्ष्य को चिन्हित करने के लिए एक बाण निकाला और अपने धनुष की प्रत्यंचा पर चढ़ा कर उसे अपने लक्ष्य पर छोड़ दिया। पल भर में ही वह बाण पीपल के पेड़ पर मौजूद सभी सूखे पत्तों को चिन्हित कर वापस अपने तरकस में लौट आया।
उस बाण के वापस आते ही बर्बरीक ने जैसे ही उन पत्तों को काटने के लिए अपना दूसरा बाण तरकस से निकाला उसी समय एक सूखा पता धरती पर गिर पड़ा। जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पांव के नीचे छिपा लिया।
उधर पहले के ही भांति बर्बरीक ने दूसरे बाण को अपने धनुष की प्रत्यंचा पर चढ़ाकर पीपल के पेड़ पर छोड़ दिया। देखते ही देखते बर्बरीक के इस बाण ने पल भर में ही सारे सूखे पत्तों को काट दिया। परन्तु बर्बरीक का ये दूसरा बाण तरकस में वापस लौटने के बजाय श्रीकृष्ण के पांव के पास जाकर रुक गया।
ये देखकर बर्बरीक ने श्रीकृष्ण से कहा कि हे प्रभु! आपने मेरे द्वारा चिन्हित पत्ते को अपने पांव के नीचे छूपा रखा है। कृपा कर अपना पांव हटा लीजिए क्योंकि मेरे ये बाण अपने लक्ष्य से कभी नहीं चूकते। बर्बरीक की ये बातें सुनकर भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुए कहा- पुत्र बर्बरीक! ये प्रमाणित हो गया कि तुम पल भर में ही इस युद्ध को समाप्त कर सकते हो। किंतु अब तुम्हारा जीवित रहना धर्म के अनुकूल नहीं है।
ये सुनकर घटोत्कच सहित पांचों पांडव हैरान रह गए। फिर युधिष्ठिर सहित सभी पांडव श्रीकृष्ण से पूछा- हे वासुदेव! ये आप क्या कह रहे हैं? ये तो हमारे लिए अच्छी बात है कि बर्बरीक युद्घ में हमारे तरफ से हिस्सा लेगा। फिर आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?
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फिर श्रीकृष्ण ने कहा कि आपलोगों को जैसा दिख रहा है वो सत्य नहीं है। ये सुनकर अर्जुन बोले- फिर सत्य क्या है वासुदेव?
तब भगवान ने जवाब दिया- आपलोगों को सारी सच्चाई बर्बरीक ही बताएगा। श्रीकृष्ण के कहे अनुसार बर्बरीक ने सच बताते हुए कहा- पितामह! प्रभु श्रीकृष्ण सही कह रहे हैं क्योंकि मैंने अपने माता को वचन दे रखा है कि युद्ध में जो भी पक्ष निर्बल होगा मैं उसी पक्ष से युद्ध करूँगा।
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ये सुनकर भीम ने कहा- हे वासुदेव! शक्ति की गणना के अनुसार तो युद्ध में हमारा ही पक्ष निर्बल है, फिर आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? तब श्रीकृष्ण ने भीम से कहा- हे भीम! शुरुआत में आपका पुत्र बर्बरीक आपके ही पक्ष से युद्ध लड़ेगा। लेकिन अगले ही पल जब कौरवों का नाश हो जाएगा तो ये आपके विरुद्ध युद्ध करने लगेगा और कौरवों की तरह ये आप सभी का भी विनाश कर देगा।
भगवान श्रीकृष्ण के मुख से ऐसी बात सुनकर बर्बरीक ने उसी क्षण उनके चरण पकड़ लिए और कहा- हे प्रभु! अब आप ही बताइये मैं क्या करूँ?
तब श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को अपना प्राण त्याग करने को कहा। ये सुनकर बर्बरीक ने अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा- भगवान मेरी एक इच्छा है कि मैं भी इस युद्ध में शामिल हो सकूँ और अपनी आंखों से इस युद्ध को देख सकूँ।
ऐसे में अब आप ही बताइये की मेरा क्या होगा? तब भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को अपने दोनों हाथों से उठाते हुए कहा- वीर बर्बरीक! मैं तुम्हें वचन देता हूँ कि तुम्हारी युद्ध देखने की इच्छा जरूर पूरी होगी लेकिन इसके लिए तुम्हें अपना शीश दान करना होगा। बर्बरीक ने जवाब दिया कि प्रभु जैसी आपकी आज्ञा।
फिर उसने अपने तरकस से एक बाण निकाला और उसे संधान करके ऊपर की ओर छोड़ दिया। देखते ही देखते पल भर में ही उस बाण ने बर्बरीक का सिर धड़ से अलग कर दिया जो श्रीकृष्ण के चरणों में जाकर गिर गया।
उधर बर्बरीक के शीश को कटा हुआ देखकर पांचों पांडव और घटोत्कच शोक से व्याकुल हो गए। फिर भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के सिर को अपने हाथों से उठाया। उसी समय आकाश में देवी जगदम्बिका प्रकट हुई और उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को प्रणाम करते हुए कहा- हे वासुदेव! मेरे लिए क्या आज्ञा है?
तब श्रीकृष्ण ने कहा- हे देवी! बर्बरीक के शरीर को अमृत से सींचने की कृपा कीजिये, ताकि वीर बर्बरीक का शरीर अजर-अमर हो जाये।
भगवान का आदेश पाते ही देवी ने कटे हुए सिर को अमृत से सींच कर अजर-अमर कर दिया और स्वयं अंतर्ध्यान हो गयी। फिर बर्बरीक का कटा हुआ सिर भगवान श्रीकृष्ण से कहने लगा- प्रभु, आप धन्य है। आपकी कृपा से मैं इस युद्ध को अपनी आंखों से देख पाऊँगा। अब ऐसा लगता है कि मेरा जीवन सफल हो गया।
इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के सिर को कुरुक्षेत्र के समीप एक पर्वत के चोटी पर अपनी दिव्य शक्ति से स्थापित कर दिया। उसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के कटे हुए सिर से कहा- हे बर्बरीक! तुम पर्वत के इस चोटी से कल से शुरू होने वाले धर्मयुद्ध को देख सकोगे और तुम्हीं इस युद्ध के एक मात्र साक्षी रहोगे।
तुमसे ही आने वाली पीढियां इस धर्मयुद्ध की कथा जान पाएगी। हे बर्बरीक! मैं आज से तुम्हें अपना नाम और शक्ति देता हूँ। जिसके बाद तुम आज से खाटू श्याम के नाम से जाने जाओगे और कलयुग में जो भी तुम्हारी पूजा श्रद्धा तथा भक्ति के साथ करेगा उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे।
फिर श्रीकृष्ण के ऐसा कहने के बाद पांडवों ने बर्बरीक के सिर को प्रणाम किया और वे सभी अपने शिविर को लौट आये। अगले दिन कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का धर्मयुद्ध शुरू हो गया। जो अठारह दिनों तक चला। इस युद्ध में कौरव पक्ष के सभी महारथी मारे गए और पांडवों को जीत मिली।
जब भीम के हाथों दुर्योधन के वीरगति प्राप्त होने के बाद पांचों पांडव अपने शिविर में लौट आये। फिर कुछ दिनों बाद पांचों पांडव युद्ध में मिली जीत का श्रेय खुद को देने लगे। एक ने कहा कि उसने युद्ध में धर्म का संचालन धर्मपूर्वक किया इसलिए हम सभी को युद्ध में जीत मिली।
तो किसी ने कहा कि अगर वह पितामह भीष्म को बाणों की सैया पर नहीं सुलाता तो उन्हें युद्ध में जीत हासिल करना असम्भव था। सभी पांचों भाइयों के बीच ये संशोधन चल ही रही थी कि श्रीकृष्ण उस कक्ष में जा पहुंचे और उन सभी से बोले कि किस बात को लेकर आपलोगों में बहस चल रही है।
पांचों पांडवों ने सारी बात श्रीकृष्ण को बताया जिसे सुनकर श्रीकृष्ण मुस्कुराने लगे। तब युधिष्ठिर ने पूछा कि हे वासुदेव! इस युद्ध में जीत का श्रेय किसे देना चाहेंगे। तब श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से बोले- इस बात का उत्तर तो वहीं दे सकता है जिसने इस पुरी युद्ध को अपनी आंखों से देखा है और वहीं इस युद्ध का एक मात्र साक्षी भी है।
श्रीकृष्ण के इतना कहते ही पांचों पांडव समझ गए कि वासुदेव बर्बरीक की ही बात कर रहे हैं। फिर पांचों पांडव भगवान श्रीकृष्ण के साथ उस पर्वत पर गये जिसकी चोटी पर से बर्बरीक सम्पूर्ण महाभारत के युद्ध को देखा था।
वहाँ पहुँचने पर बर्बरीक ने श्रीकृष्ण और पांचों पांडवों को सादर प्रणाम किया और श्रीकृष्ण से पूछा- भगवान आप यहाँ किस उद्देश्य से आये हैं। तब श्रीकृष्ण ने कहा- वीर बर्बरीक! तुम्हारे पांचों पितामह स्वयं को इस युद्ध मे जीत का श्रेय दे रहे थे। लेकिन वास्तविकता क्या है ये केवल तुम्हीं बता सकते हो।
तब बर्बरीक ने कहा- पितामह! आपलोग किस आधार पर इस युद्ध में मिली विजय का श्रेय दे रहे हैं? जबकि सत्य तो ये है कि आप सभी किसी से लड़े ही नहीं है। वास्तव में तो युद्ध मेरे प्रभु श्रीकृष्ण कर रहे थे। उन्होंने ही ये युद्ध लड़ा जिसमें वे खुद जीते भी और खुद हारे भी।
बर्बरीक की बातें सुनकर पांचों पांडवों का सिर लज्जा से झुक गया। फिर युधिष्ठिर श्रीकृष्ण से बोले- वासुदेव हमें क्षमा कर दें। हम सभी को अपने-अपने बल का अभिमान हो गया था। अब हम जान गए हैं कि ये युद्ध आपकी मर्जी से हुआ। इसके बाद वे सभी अपने महल को लौट आये।
इस पौराणिक कथा से सीख
इसीलिए तो कहा जाता है कि मनुष्य को कभी भी किसी चीज का अभिमान नहीं करना चाहिए क्योंकि हम तो भगवान के बनाये हुए सिर्फ एक कठपुतली है।
मित्रों उम्मीद करता हूँ कि आपको खाटू श्याम जी की प्रेरणादायक कहानी काफी पसंद आई होगी। अगर आपको महाभारत की ये रहस्यमयी पौराणिक कहानी अच्छी लगी हो तो इसे शेयर जरूर करें। आपका धन्यवाद।।