परोपकारी राजा शिबि की बेहद रोचक कहानी। Raja Shibi Ki Kahani

Raja Shibi Ki Kahani | King Shivi Story in Hindi | राजा शिबि की बेहद रोचक कहानी | राजा शिवि और दो पक्षियों की कहानी

Best short moral story in hindi,king shibu story,hindi story
Best short moral story hindi

आज इस बेहतरीन मोरल स्टोरी में एक ऐसे महान राजा के बारे में कहानी सुनाने वाले हैं, जिनके महानता के आगे देवता भी नतमस्तक होते हैं। इस कहानी से हम सिख सकते हैं, की नैतिक जीवन क्या है, नैतिक जीवन का मूल्य क्या होता है?

 

इस प्रेरणादायक कहानी से हम ये सिख लेंगे कि हमारे जीवन में नैतिक मूल्यों का महत्व क्या है?

 

परोपकारी राजा शिबी की कहानी |King Shivi Moral Story in Hindi

 

उशीनगर देश के राजा शिबि बड़े ही धर्मात्मा राजा थे। उनके परोपकार के चर्चे पूरे दुनिया में फैली थी। उनकी परोपकारी की चर्चा देवलोक तक जा पहुंची थी। सारे देवगण उनके महानता के चर्चा कर रहे थे। लेकिन देवराज इंद्र और अग्निदेव को इनके बातों पर विश्वास नहीं हुआ, तो वे खुद इनकी परीक्षा लेने धरती पर आये।

देवराज इंद्र बाज और अग्निदेव कबूतर का रूप लेकर उनके राज्य में आये। उस समय राजा शिबि एक धार्मिक यज्ञ कर रहे थे। उसी समय एक घायल कबूतर चीखता हुआ राजा शिबि के गोद में गिरा। कबूतर अंदर से बहुत डरा हुआ था और दर्द से कराह रहा था। राजा ने उस कबूतर के ऊपर प्रेम से हाथ फेरते हुये उसे सहलाया।

कबूतर के पीछे से एक बजे उड़ता हुआ आया और वह राजा के सामने बैठ गया। बाज ने आदमी की आवाज में बोलते हुए कहा- महाराज आप न्याय करने वाले मूर्ति है। आपको किसी का भी भोजन नहीं छीनना चाहिए। यह कबूतर मेरा भोजन है। आप इसे मुझे दे दीजिए।

ये कहानी भी पढें:- Best Short Moral Story In Hindi | माँ-बेटे की रुला देनेवाली कहानी

महाराज शिबि ने कहा- तुम मनुष्य की भाषा बोलते हो। तुम साधारण पक्षी तो नहीं लगते हो। लेकिन तुम चाहे जो कुछ भी हो, यह कबूतर मेरे शरण में आया है। मैं अपनी शरणागत का भला त्याग कैसे कर सकता हूँ।

उनकी इस बात पर बाज बोला- महाराज मैं बहुत भूखा हूं। अगर आप मेरा भोजन छीन लिए तो मेरा प्राण निकल जायेगा।

राजा शिबी बोले – तुम्हारा भूख तो किसी भी मांस को खा कर के मिट सकता है। तुम्हारे लिए इस कबूतर को मारना जरूरी तो नहीं है। तुम्हे कितना मांस चाहिए, ये बोलो तुमको दूसरे किसी चीज़ का मांस मिल जाएगा, पर मैं इस कबूतर को मारने नहीं दूंगा।

बाज कहने लगा- महाराज! कबूतर मरे या फिर कोई दूसरा जानवर मरे, मांस तो किसी को मारने के बाद ही मिलेगा। जितने भी प्राणी यहाँ है, सब आपकी प्रजा ही तो है, सब आपकी शरण में है। अगर मेरे भूख को मिटाने के लिए जब किसी प्राणी को मारना ही पड़ेगा तो इस कबूतर को ही मारने में क्या दोष है ?

मैं तो मांस खाने वाला प्राणी हूँ और मैं कभी अपवित्र मांस का सेवन नहीं करता। मुझे किसी प्रकार का लोभ भी नही है। अगर आपको मेरा भूख मिटाना ही है तो इस कबूतर के बराबर किसी पवित्र प्राणी का ताजा मांस दे दीजिए। मेरा भूख इतने से ही मिट जाएगा।

इस बात पर राजा शिबि ने सोच विचार कर कहा- मैं दूसरे किसी प्राणी का जान नहीं लूंगा, तुम मेरा ही मांस खा कर अपना भूख मिटा लो।

बाज बोला- महाराज आप एक इतने महान चक्रवर्ती सम्राट होकर अपना शरीर क्यों काट रहे हैं ? आप फिर से एक बार सोच लीजिये।

इस पर राजा ने कहा- बाज! तुमको अपना भूख मिटाना है, तुम्हे तो अपना भूख मिटाने से न काम है। तुम मांस लो और अपनी भुख मिटाओ। मैंने सोच समझ कर ही ये फैसला लिया है। मेरा शरीर कोई अजर अमर नहीं है। शरण मे आये किसी प्राणी का प्राण मेरे मांस से बच जाएगा, तो इससे अच्छा मेरे लिए कुछ भी नही हो सकता।

महाराज शिबि की आज्ञा से वहाँ तलवार मंगवाया गया। एक पलड़े में कबूतर को बैठाया गया और दुसरे पलड़े में महाराज शिबि ने अपना एक हाथ काट कर रख दिया। लेकिन कबूतर का पलड़ा अभी भी भाड़ी था,वह पलड़ा जमीन से नहीं उठा।

महाराज शिबि ने अपना एक पैर काटकर पलड़े पर रख दिया और जब फिर भी कबूतर का पलड़ा जमीन से नहीं उठा, तो उन्होंने अपना दूसरा पैर भी काटकर पलड़े पर रख दिया। इसके बाद भी कबूतर का पलड़ा भाड़ी ही था वो जमीन पर ही टिका रहा। महाराज शिबि  का शरीर पूरा शरीर खून से लतफत हो गया था, लेकिन फिर भी उन्होंने उफ तक नहीं किया। उनको जरा भी इस बात को कोई दुख नहीं हुआ।

Moral story about life,king shibi and two birds story
राजा शिबि और कबूतर की कहानी

अंत में वे स्वयं पलड़े पर बैठ गये और बाज से बोले- तुम मेरी इस देह का मांस खा कर अपनी भूख को मिटा लो। महाराज जिस पलड़े पर बैठे थे, वह पलड़ा उनके धर्म की वजह से जमीन पर आ बैठा और कबूतर का पलड़ा हल्का होकर ऊपर उठ गया था।

लेकिन उसी समय सब लोग आश्चर्यचकित हो गये। उन्होंने देखा को बाज तो साक्षात देवराज इंद्र के रूप में प्रकट हो गया और कबूतर अग्नि देवता बन गया। अग्नि देवता ने कहा- महाराज! आप इतने बड़े धर्मात्मा है कि आपकी बराबरी मैं तो क्या , पूरे विश्व में कोई नहीं कर सकता।

 

ये कहानी भी पढें:- भगवान बुद्ध के जीवन की सच्ची घटना

देवराज इंद्र ने महाराज शिबि का शरीर पहले जैसा सुंदर बना दिया और बोले- महाराज हमदोनों आपके धर्म की परीक्षा लेने के लिए बाज और कबूतर का रूप लेकर यहाँ आये थे। हे राजन! इस संसार में बहुत कम ऐसे लोग मिलेंगे जो दूसरों के परोपकार के लिए अपनी जान भी दाव पर लगा देते हैं।

हे राजन! दूसरों के परोपकार करने वाले हमेशा स्वर्ग में जाते हैं। भगवान उनको कभी किसी चीज़ का दुख नहीं देते हैं। भगवान आपको हमेशा सुख प्रदान करें। आपका यश पूरे संसार में अमर रहेगा।

दोनों देवता महाराज शिबि की प्रशंसा करके और उन्हें आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद लोग उनको कबूतर के रक्षक राजा के नाम से भी जानने लगे। उसके बाद राजा शिबि ने अनन्त काल तक अपने देश में सुखपूर्वक राज किये।

Moral Education | नैतिक शिक्षा

 

इस पौराणिक कथा से सीख मिलती है कि हमें अपना काम निकालने के लिए, अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए, कभी किसी दूसरे का उपयोग नहीं करना चाहिए। अपनी जान को बचाने के लिए किसी निर्दोष का प्राण नहीं लेना चाहिए। अगर हम दूसरे के भला करेंगे तो इससे खुद का ही भला होता है।

 

दोस्तों उम्मीद करता हूं कि आपको महाराज शिबि की ये कहानी आपको बहुत अच्छी लगी होगी। आपको इस कहानी से काफी कुछ सीखने को मिला होगा। आपने इस कहानी से क्या सीखा? इस कहानी से आपके जीवन में क्या क्या परिवर्तन आये। आपने किस किस का भला किया comment बॉक्स में जाकर जरूर शेयर कीजिये।

आप ऐसे ही बहुत सारी कहानियों के लिए हमें ऐसे ही सपोर्ट करते रहिए । साथ ही और भी best short moral stories in hindi में पढ़ने के लिए हमें फॉलो जरूर करें।

Share this article on

Leave a Comment